ई-गवर्नेस में 100 करोड़ की ठगी के आरोप

प्रधानमंत्री मोदी ने पिछले हफ्ते जिस डिजिटल इंडिया के माध्यम से समृद्ध व साक्षर भारत की योजना का शुभारंभ बड़े जोर-शोर से किया तथा गांवों और शहरों के बीच डिजिटल गेप को खत्म कर ई- गवर्नेंस के सब्जबाग दिखाए। इसकी नींव यूपीए सरकार के समय सन् 2005-2006 से भारत के 6 लाख गांवों को ई-गवर्नेस के माध्यम से इंटरनेट से जोडऩे की योजना पहले ही धाराशायी हो चुकी है। 10 हजार करोड़ से ज्यादा जनता की गाड़ी कमाई से प्राप्त राजस्व को पीपीपी के तहत गांवोंं में कामन सर्विस सेंटर (सीएससी) स्थापित करने की योजना भ्रष्ट अधिकारियों और प्रायवेट व्यापारियों की भेंट चढ़ चुकी है। कोढ़ में खाज वाली बात यह है कि केंद्र और राज्य सरकार की योजना के नाम पर ग्रामीण क्षेत्र के शिक्षित भोले-भाले बेरोजगार युवकों से प्रायवेट पार्टियों ने 35000 से लेकर 5 लाख रुपए तक निवेश के नाम पर करोड़ों रुपए ठग लिए, जिसमें राज्य के भ्रष्ट अधिकारियों ने खुलकर इनका साथ दिया। इसी योजना के माध्यम से म.प्र. के इंदौर व उज्जैन संभाग के लिए 13 जिलों के तकरीबन 12500 गांवों के 2158 शिक्षित बेरोजगारों से दैनिक भास्कर ग्रुप के चेयरमैन रमेशचंद्र अग्रवाल, डायरेक्टर डॉ. भरत अग्रवाल के अलावा ग्रुप के अन्य अधिकारियों व डायरेक्टरों ने प्रदेश सरकार के आला अफसरों की सांठगांठ से एनजीओ एनआईसीटी के माध्यम से अरबों रुपए की ठगी को अंजाम दिया। 

इंदौर, प्रदीप मिश्रा
क्या 100 करोड़ की ठगी के आरोपी दैनिक भास्कर के मालिकान और आला मुलाजिम अदालत और राष्ट्रपति से भी बड़े हैं? जो राज्य और केंद्र सरकार, केंद्र की ई-गवर्नेंस योजना में इनके आपराधिक षड्यंत्रों में बराबर के दोषी भ्रष्ट सरकारी अफसरों की आड़ में इन पर मुकदमा चलाने की मंजूरी नहीं दे रही है। ज्ञात हो कि भ्रष्टाचार निवारण न्यायालय इंदौर ने 9 नवंबर 2012 को परिवादीगणों को केंद्र और राज्य सरकार से इस मामले में अभियोजन की स्वीकृति आदेश प्रस्तुत करने का आदेश दिया था। इसके करीब 13 महीने बाद 2014 में सूचना के अधिकार के तहत जानकारी मिली कि इस मामले में राष्ट्रपति ने भी राज्य सरकार को बार-बार लिखा, लेकिन वह कोई जवाब नहीं दे रही है। वहीं दूसरी ओर डिपार्टमेंट ऑफ परसोनल एंड ट्रेनिंग (डीओपीटी) द्वारा म.प्र. सरकार के मुख्य सचिव को तकरीबन 10 से ज्यादा पत्र इस बात के लिखे जा चुके हैं कि इन अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा चलाने की स्वीकृति देने के लिए अपनी सहमति दें। यहां तक की म.प्र. सरकार से सिंगल विंडो के माध्यम से भी जवाब मांगा गया, लेकिन आज दिनांक तक म.प्र. सरकार ने न तो राष्ट्रपति कार्यालय को जवाब दिया ,न ही केंद्र सरकार के मंत्रालय डीओपीटी को जिसका प्रभार स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथ में है। जबकि सुप्रीम कोर्ट के निर्देश है कि यदि 120 दिनों में किसी मामले में अभियोजन की स्वीकृति नहीं मिलती है, तो न्यायालय खुद संज्ञान लेकर अभियोजन की स्वीकृति मान सकता है।

news in between
उल्लेखनीय है कि केंद्र सरकार की ई-गवर्नेस योजना के तहत इंदौर और उज्जैन संभाग के 13 जिलों के 12 हजार गांवो को इंटरनेट के माध्यम से जिले के प्रशासनिक संकुल से जोडऩे के उद्देश्य से 2158 ग्राम पंचायतों में कॉमन सर्विस सेंटर (सीएससी) स्थापित करने की योजना में दैनिक भास्कर और उसके एनजीओ, एनआईसीटी (नेटवर्क फॉर इन्फर्मेंशन एंड कम्प्यूटर टेक्नोलॉजी) विजयनगर इंदौर, के उक्त आरोपियों ने ग्रामीण शिक्षित बेरोजगारों से करीब 100 करोड़ की ठगी की। इनके खिलाफ प्रदीप मिश्रा और जितेंद्र जायसवाल ने 22 जून 2012 को भ्रष्टाचार निवारण न्यायालय इंदौर में धारा 420, 467, 468, 471, 109, 120बी व भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 की धारा 13 (1) (डी) व 13 (2) के अन्तर्गत परिवाद दायर किया था। न्यायालय ने सबूतों को देखने व प्रस्तुत दस्तावेजों का अध्ययन करने के साथ गवाहों को सुनने के बाद सरकारी अधिकारियों व अन्य आरोपियों के खिलाफ 9 नवंबर 2012 को केंद्र सरकार व राज्य शासन से सरकारी अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा चलाने की स्वीकृति प्रस्तुत करने का आदेश दिया था।
इसके बाद परिवादियों ने 14 जनवरी 2013 को आरोपियों के खिलाफ अभियोजन की स्वीकृति के लिए 700 पेजों के सूबतों, न्यायालय में गवाहों के बयानों की प्रतिलिपि और न्यायालय द्वारा दिए गए अभियोजन की स्वीकृति प्रस्तुत करने के आदेश की प्रतिलिपि के साथ राष्ट्रपति व डिपार्टमेंट ऑफ पर्सनल एंड ट्रेनिंग (डीओपीटी), नई दिल्ली को आवेदन किया, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई।
पिछले 26 माह से परिवादियों ने कई बार सूचना के अधिकार के तहत राष्ट्रपति के कार्यालय और केंद्र सरकार से जानकारी मांगी कि उक्त आरोपियों के खिलाफ अभियोजन की स्वीकृति कब तक मिलेगी, तो वहां से जवाब मिला कि बार-बार पत्र लिखने के बाद भी राज्य शासन कोई जवाब ही नहीं दे रहा है, इसलिए अभियोजन की स्वीकृति देने में देरी हो रही है।
यह भी कम आश्चर्यजनक बात नहीं है कि जब न्यायालय ने इस प्रकारण में अपराध पर संज्ञान ले लिया है और आरोपियों पर संज्ञान लेने के लिए केंद्र व राज्य सरकार से अभियोजन की स्वीकृति प्रस्तुत करने का आदेश दिया है, वहीं दूसरी ओर डीओपीटी की अभियोजन शाखा के आला विधि अधिकारियों ने इस केस की फाइल का गहन अध्ययन कर आरोपियों द्वारा किए गए कृत्यों में अपराध पा लिया। तो फिर केंद्र सरकार व राष्ट्रपति को राज्य शासन से क्या पूछना बाकी है? जबकि राष्ट्रपति कार्यालय व केंद्र सरकार की अभियोजन शाखा को प्रस्तुत किए गए दस्तावेजों के आधार पर सिर्फ यह देखना है कि इस मामले में प्रथम दृष्टया कोई अपराध बनता है कि नहीं? वहीं सर्वोच्च न्यायालय के यह भी निर्देश है कि यदि किसी मामले में अभियोजन की स्वीकृति नहीं मिलती है, तो न्यायालय स्वयं संज्ञान लेकर अभियोजन की स्वीकृति मान सकता है, लेकिन ऐसा भी कुछ होता नजर नहीं आ रहा है। इससे स्पष्ट है कि इन महाठगों को राज्य या केंद्र के स्तर पर किसी के द्वारा बचाया जा रहा है। संभवत: इसीलिए पानी की तरह साफ मामले में अभियोजन की स्वीकृति देने में आना-कानी की जा रही है।
ये हैं दैनिक भास्कर ग्रुप व उसके एनजीओ (एनआईसीटी) के द्वारा किए गए आपराधिक कृत्य 

  • इंदौर और उज्जैन संभाग की 2158 ग्राम पंचायतों में इंटरनेट आधारित कॉमन सर्विस सेंटर (सीएससी) स्थापित करने के लिए दैनिक भास्कर ग्रुप की कंपनी साइटर्स एंड पब्लिसर्स लिमिटेड और इसी ग्रुप द्वारा संचालित एनजीओ एनआईसीटी द्वारा संयुक्त रूप से निविदा प्रस्तुत की गई।
  • एनआईसीटी की कुल नेटवर्थ मात्र एक लाख थी और 15 लाख घाटे में चल रहा था, जबकि योजना की गाइडलाइन के अनुसार निविदा प्रस्तुत करने के लिए कम से कम 2.5 करोड़ की नेटवर्थ होना आवश्यक था। इसी कमी को पूरा करने के लिए दैनिक भास्कर ग्रुप की कंपनी राइटर्स एंड पब्लिसर्स लि. (जिसका वर्ष 2006 में अस्तित्व ही नहीं था, क्योंकि इसका 2006 में ही डीबी कॉर्प में विलय हो गया था) के 2004-05 और 2006 के वित्तीय दस्तावेजों और बैलेंस सीटों का उपयोग 2008 में फर्जी सीए से ऑडिट कराकर सरकार से टेंडर प्राप्त करने के लिए प्रस्तुत किए?
  • इस तरह दैनिक भास्कर ग्रुप व उसके द्वारा संचालित एनआईसीटी, जिसको निविदा प्रस्तुत करने की पात्रता भी नहीं थी, को प्रदेश सरकार के अधिकारियों ने उनके द्वारा प्रस्तुत वित्तीय दस्तावेजों व राइटर्स एंड पब्लिसर्स कंपनी के अस्तित्व की जांच किए बिना ही केंद्र सरकार द्वारा 2158 सेंटर स्थापित करने के लिए दी जाने वाली आर्थिक सहायता में बोली लगाने की अनुमति दे दी? बड़े ही आश्चर्य की बात है कि जिस एनजीओ की कुल हैसियत मात्र एक लाख रुपए की थी और 15 लाख रुपए घाटे में चल रहा था और इसके साथ संयुक्त रूप से बोली लगाने वाली राइटर्स एंड पब्लिसर्स लि. का तो अस्तित्व ही नहीं था? उन्होंने सरकार द्वारा दी जा रही आर्थिक सहायता को ठुकरा कर येन-केन प्रकारेण टेंडर हासिल करने के लिए उल्टे शासन को इंदौर संभाग के प्रति सेंटर के लिए पांच रुपए व उज्जैन संभाग के सेंटर को तीन प्रति सेंटर तीन रुपए प्रति माह देने का प्रस्ताव दे दिया! घोर लापरवाही के साथ म.प्र. शासन ने इनके इस प्रस्ताव को मंजूरी दे दी। इस तरह इंदौर व उज्जैन संभाग की 2158 ग्राम पंचायतों में सीएसी सेंटर खोलने का ठेका हथिया लिया।
  • 18 फरवरी 2008 को म.प्र. सरकार के आईटी सचिव अनुराग जैन व एमपीएसईडीसी के प्रबंध निदेशक अनुराग श्रीवास्तव तथा टेंडर प्राप्त करने वाली कंपनी एनआईसीटी व राइटर्स एंड पब्लिसर्स लि. के बीच एक मास्टर सर्विस एग्रीमेंट साइन किया गया। इसमें भी राइटर्स एंड पब्लिसर्स लि. की ओर से बिना किसी अधिकार पत्र या बोर्ड ऑफ डायरेक्टर से पारित आदेश पत्र के बिना कंपनी के अदने कर्मचारी विवेक जैन  ने साइन किए?
  •  4 फरवरी 2008 को एनआईसीटी के उपाध्यक्ष मुकेश हजेला ने शहर के प्रतिष्ठित होटल में प्रेस कॉन्फ्रेंस का आयोजन कर झूठा दावा किया कि इस योजना के माध्यम से सीएससी लेने वालों को पेट्रोल पंप व गैस एजेंसी दी जाएगी, जबकि एनआईसीटी को स्वयं के खर्च से सभी 2158 सेंटर स्थापित करना थे। इसका स्पष्ट उल्लेख मास्टर सर्विस एग्रीमेंट में किया गया है।
  •  6 मई 2008 को दैनिक भास्कर में फुल पेज विज्ञापन दिया गया, जिसमें खुले रूप में सेंटर देने के नाम पर तीन से पांच लाख रुपए निवेश की शर्त रखी गई? (जिसको लेने का अधिकार था ही नहीं। सूचना के अधिकार में मांगी गई जानकारी के अनुसार)
  • तकरीबन 10 हजार ग्रामीण शिक्षित बेरोजगारों से 300 रुपए मात्र आवेदन के नाम पर लिए गए? 2158 लोगों में तीन से पांच लाख के ड्रॉफ्ट व नकद लेकर यह सेंटर कागजों पर बेच दिए। इस तरह करीब 100 करोड़ की धोखाधड़ी खुलेआम प्रदेश के सरकारी अधिकारियों के साथ आपराधिक षड्यंत्र कर केंद्र एवं राज्य सरकार की योजना के नाम पर ग्रामीण बेरोजगारों के साथ की गई।

आदेश के बाद भी केस दर्ज नहीं किए!
इस महाठगी की इंदौर, देपालपुर व बड़वाह (खरगोन) में शिकार हुए बेरोजगारों ने शिकायत की तो इंदौर कलेक्टर, एसडीएम देपालपुर व एसडीएम बड़वाह ने जांच के बाद आरोपियों के खिलाफ केस दर्ज करने के आदेश दिए। ठगों के वकील ने उक्त सभी के समक्ष उपस्थित होकर रुपए लौटाने का वचन भी दिया, लेकिन उनके खिलाफ आज तक न तो कहीं भी केस दर्ज किया गया और न ही उन्होंने रुपए लौटाए।

केंद्र सरकार की योजना के नाम पर बेच दिया अपना प्ले स्कूल

  • हद तो तब हो गई जब एनआईसीटी के उपाध्यक्ष मुकेश हजेला की पत्नी के नाम पर चलने वाले उड़ान प्ले स्कूल को भी सरकारी परियोजना का हिस्सा बताकर 60 हजार रुपए प्रति ग्राम पंचायत में बेच दिया।
  • 2008 के पहले एनआईसीटी के उपाध्यक्ष और डायरेक्टर मुकेश हजेला, महेंद्र गुप्ता और जितेंद्र चौधरी साइकिल पर घूमा करते थे और दूध बांटते थे, लेकिन आज बीएमडब्ल्यू और मसर्डीज जैसी कारों में घूम रहे हैं? इसी ठगी के रूपए से!

यह थी योजना…
केंद्र सरकार की यूनियन कैबिनेट के द्वारा राष्ट्रीय ई-गवर्नेस प्लान के तहत मई 2006 में भारत के सम्पूर्ण गांवों के लिए एक महत्वपूर्ण योजना जी टू सी (गर्वमेंट टू सिटीजन) बनाई गई। इसके तहत प्रत्येक छह गांवों के लिए कम्प्यूटर और इंटरनेट सुविधा आधारित एक कॉमन सर्विस सेंटर बनाया जाना था, जिसके माध्यम से गांव के लोगों को सरकारी योजनाओं व सरकारी दस्तावेजों का लाभ गांव में ही उपलब्ध करवाया जा सके व शिक्षित बेरोजगार युवकों को गांव में ही रोजगार उपलब्ध करवाया जा सके। इन सेंटरों के माध्यम से गांव वालों को खसरा बी-1, बी-2 की नकल, व्हीकल रजिस्ट्रेशन, सरकारी रोजगार के बारे में जानकारी, बैंक से लोन आदि जैसी अत्यंत महत्वपूर्ण सरकारी दस्तावेज व सरकार की योजनाओं के बारे में जानकारी मिलना थी। इन सेंटरों को स्थापित करने में लगने वाली व्यय राशि के लिए केंद्र सरकार द्वारा 5472 करोड़ रुपए का फंड आवंटित किया गया था। इस परियोजना की समस्त जानकारी तीन वॉल्यूम में तथा गाइडलाइन के साथ प्रत्येक राज्य सरकार को उक्त परियोजना क्रियान्वित करने के लिए स्वीकृत फंड के साथ प्रदान किया गया था। म.प्र. में इस परियोजना को क्रियान्वित करने के लिए केंद्र सरकार के द्वारा 201.98 करोड़ रुपए का फंड आवंटित किया गया था। 28-5-2007 को म.प्र. में इस परियोजना में अपनी ओर से 58 करोड़ रुपए का फंड आवंटित कर कुल 259.98 करोड़ रुपए के साथ कॉमन सर्विस सेंटर स्थापित करने की जिम्मेदारी सरकार ने मप्र स्टेट इलेक्ट्रॉनिक डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन लि. को गाइडलाइन व प्रोजेक्ट रिपोर्ट के साथ दी थी, जिस पर एमपीएसईडीसी के सेवकों की जिम्मेदारी व लोक कत्र्तव्य बनता था कि वे इस परियोजना को पूर्ण जिम्मेदारी के साथ पूरी करें।
कौन है डॉ. भरत अग्रवाल
दैनिक भास्कर ग्रुप में डायरेक्टर के पद पर सुशोभित यह शातिर आदमी दिल्ली में पदस्थ है। प्रधानमंत्री के सरकारी विदेशी दौरों में दैनिक भास्कर की तरफ से मीडिया प्रतिनिधि के तौर पर विदेश यात्राएं करता है? और यही शातिर ठग दैनिक भास्कर ग्रुप द्वारा संचालित एनजीओ (एनआईसीटी) का अध्यक्ष है। इस एनजीओ का काम केंद्र व राज्य सरकार की योजनाओं को एनजीओ के माध्यम से येनकेन प्रकारेण हासिल कर सम्पूर्ण भारत वर्ष में ग्रामीण व शिक्षित बेरोजगारों के साथ सरकारी योजनाओं के नाम पर पैसा जमा करवाकर सम्पूर्ण भारतवर्ष में करोड़ों-अरबों की ठगी करने का व्यापक जाल फैला रखा है। ये न सिर्फ ठगी का गोरखधंधा कर रहे हैं वरन सरकारी योजनाओं को जो जनता के विकास के लिए बनाई जाती है उसके साथ भी बड़े पैमाने पर खिलवाड़ कर देश के विकास के साथ गद्दारी कर रहे हैं।

One thought on “कौन बचा रहा है दैनिक भास्कर चेयरमैन रमेश अग्रवाल को ”
  1. When I originally left a comment I appear to have clicked on the -Notify me when new comments are added-
    checkbox and now each time a comment is added I recieve four emails with the exact same comment.
    There has to be a way you are able to remove me from that service?

    Kudos!

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