जब देश के अन्नदाता किसानो के साथ सरकार का यह रवैया है!तो आम आदमी की क्या बिसात है सरकार के सामने!?

@प्रदीप मिश्रा री डिसकवर इंडिया न्यू्‍ज इंदौर

  •  यदि सरकार की मंडियों में व्यापारी, और बिचौलिये किसानो का शोषण कर रहे हैं इसलिए प्राइवेट मंडी ! तो दूसरे सरकारी विभागों मे आम जनता के साथ क्या हो रहा है!? वहा कितना शोषण और भ्रष्टाचार हो रहा है तो फिर उन्हे भी निजी लोगों और बड़ी कंपनीयो के हवाले करो!*

  •  सरकार जिस तरह किसान कानून और किसानों के लोकतांत्रिक विरोध में अड़ियल और जिद्दी रवैया अपनाए हुए हैं! यह भारत के लोकतन्त्र के लिए घातक है!?*

  • जिन किसानों की बेहतरी के लिए किसान कानूनों का सरकार बखान कर रही है! वही किसान इसका – विरोध कर रहे हैं! तो सरकार क्यों जिद पर अड़ी है कानून लागू करने के लिए!

ये कितनी हास्यास्पद और शर्मनाक बात है कि सरकार खुद यह कह रही है कि सरकारी मंडियां, सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त व्यापारी, आढ़तिए और बिचौलिये मिलकर देश के अन्नदाता किसानो से उनकी उपज खरीदने मे उनका बड़े पैमाने पर शोषण कर रहे हैं! सरकारी गोदामों में अनाज सरकारी अधिकारियों और सरकारी व्यवस्था की वजह से सड़ जाता है! सरकार के ही बनाए कानून की वजह से किसान अपनी उपज पूरे देश में नहीं बेच सकता है! राज्य और केन्द्र सरकारों ने किसान की उपज को सरंक्षित करने के लिए पिछले 70 सालो में गाओ के नजदीक गोडाउन, वेयरहाउस, कोल्ड स्टोरेज आदि का व्यस्थित इंफ्रास्ट्रक्चर खड़ा नहीं किया! गाँवों से देश भर में फैली मंडियों तक क्रषी उपज ले जाने के लिए बेहतर ट्रेन, ट्रक और ट्रांसपोर्ट की व्यवस्था नही है!?

उपरोक्त सभी दिक्कतों और समस्याओं की वजह से सरकार ने यह एक कानून बनाया की देश और विदेश के उद्योगपति, कॉर्पोरेट हाउस अपनी प्राइवेट मंडी देश मे हर शहर, कस्बे और गाव मे खोल सकते हैं! खुद के भंडार ग्रह, कोल्ड स्टोरेज, वेयर हॉउस बना कर जितना चाहे उतना माल स्टोर कर सकते हैं! और जिस भाव में चाहे उस भाव में जनता को बेच सकते हैं!

उपरोक्त कानून में सरकार ने एम एस पी पर कोई बात नहीं की! जिसका सीधा मतलब है कि सरकार किसानो से अपना पल्ला झाड़ रही है! अब एक तरफ़ किसान और दूसरी तरफ देश, दुनिया के उद्योगपति, कार्पोरेट हॉउस सीधे आमने सामने! दोनों आपस में तय कर लो किस रेट पर उद्योगपति खरीदेगा, और किस रेट पर किसान बेचेगा! उद्योगपति कब खरीदेगा! फसल पैदा होने के पहले या फसल पकने के बाद!? यह सब दोनों तय कर ले! हाँ एक और खास बात किसान अपने खेत में क्या फसल बोयेगा यह उद्योग पति तय करेगा, जिसे कानट्रेक्ट फार्मिंग कहते हैं!

वही दूसरी तरफ किसानों का कहना है कि इन कानूनों को सरकार रद्द करे! क्योंकि ये कानून न तो किसानो से राय शुमारी कर बनाए गए हैं! और चूंकि इन कानूनों में सरकार ने एम एस पी को कानूनी जामा नहीं दिया! इसलिए किसान को यह लगता है जो लगना जायज भी है कि सरकार किसानों, उनकी उपजाई फसल और उनके खेतों को उद्योगपतियों और देश दुनिया के बड़े कोर्पोरेट हॉउसो के हवाले कर रही है!

सरकार का इस तरह कानून बनाकर देश की बुनियादी रीढ़ खेती से कानून बनाकर पल्ला झाड़ना कहा तक लोकतन्त्र में जायज है! इस पर हर भारतीय को विचार करना चाहिए क्योंकि अंततः भुगतान उसे ही करना है क्योंकि उद्योग पति और कार्पोरेट उनसे फल, सब्जी और किराना – राशन आदि के मुह मांगे दाम वसूलेगे!

री डिसकवर इंडिया न्यू्‍ज इंदौर*

 

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