जब से देश में उदारीकरण और निजीकरण का युग शुरू हुआ, तब से ही देश के समृद्ध और आर्थिक रूप से उन्नत राज्यों को ही इसका लाभ मिला है। पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, हिमाचल, महाराष्ट्र, गुजरात के अलावा दक्षिण के राज्य खासकर तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्र जैसे राज्यों में बड़े-बड़े उद्योग स्थापित हुए हैं। आज देश के 90 प्रतिशत बड़े उद्योग एवं भारी-भरकम विदेशी निवेश एवं विदेशी कंपनियां इन्हीं राज्यों में स्थापित हैं। ये राज्य आजादी के बाद से ही समृद्धि की ओर बढ़ते गए। वहीं, दूसरी ओर बिहार, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, राजस्थान, उड़ीसा, नार्थ ईस्ट के राज्य शुरू से लेकर आज तक पिछड़े ही रहे। यहां के निवासी गरीबी, बेरोजगारी की वजह से बड़े पैमाने पर सम्पन्न राज्यों की तरफ पलायन करने को मजबूर हुए और आज भी मजबूर हो रहे हैं। इसकी मुख्य वजह जाति विशेष का भारत के व्यापार में एकाधिकार रहा है। इन्हीं बड़े उद्योगपतियों के चंदों एवं काले धन से राजनीतिक पार्टियां चुनाव में विजय प्राप्त कर सरकार बनाती हैं और बाद में इन्हीं उद्योगपतियों के हिसाब से नीतियां बनाती हैं एवं इन्हीं के राज्यों में उद्योग-धंधे स्थापित करती हैं। मोदी सरकार को एक साल पूरा हो गया है। मोदी की महत्वकांक्षी योजना ‘मेक इन इंडियाÓ के तहत जितना भी देशी एवं विदेशी निवेश भारत में आ रहा है, वो मुख्यत: सम्पन्न राज्यों में ही निवेश हो रहा है।
सर्वाधिक फायदा गुजरात को
पिछले दिनों मोदी के चीन यात्रा के दौरान भारत और चीन के कारोबारियों के बीच 22 अरब डॉलर मूल्य के 26 समझौतों पर हस्ताक्षर हुए। इन समझौतों से अडानी और भारती समूह को सर्वाधिक लाभ हुआ। गुजरात में चीन के एसएमई टेक्सटाइल और औद्योगिक पार्क लगाएंगे। इस बारे में गुजरात सरकार के साथ चीन की कंपनियों ने 22 एमओयू साइन किए हैं। प्रधानमंत्री के साथ चीन यात्रा पर गईं गुजरात की मुख्यमंत्री ने इन करार पर दस्तखत किए। पिछले 7 सालों में अहमदाबाद के पास सानंद का इलाका ऑटो हब के रूप में विकसित हुआ है, सिर्फ चीन का ही गुजरात में निवेश 30000 हजार करोड़ का है। जनवरी में गुजरात में हुए वाइब्रेंट गुजरात समिट में रिलायंस इंडस्ट्रीज के चेयरमैन मुकेश अंबानी ने विभिन्न प्रकार के कारोबार में 100,000 करोड़ रुपए के नए निवेश की घोषणा की। प्रमुख कंपनियों, अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संगठन तथा देशों ने 250 खरब रुपए से अधिक निवेश के वादे किए गए हैं। सम्मेलन के प्रथम दो दिनों में रिकार्ड 21 हजार सहमति पत्रों (एमओयू) पर हस्ताक्षर हुए। 1,225 रणनीतिक साझेदारी के लिए हस्ताक्षर हुए, जो अब तक सर्वाधिक हैं। मुख्यमंत्री ने कहा कि यह सम्मेलन हालांकि गुजरात के लिए था, लेकिन यह भारत में निवेश के लिए आकर्षित करने तथा नरेंद्र मोदी के ‘मेक इन इंडिया को सफल बनाने में मददगार साबित होगा। अडाणी 25000 करोड़ का निवेश करेंगे। होंडा कंपनी अगले दो सालों में गुजरात और कर्नाटक में अपने प्लांट लगाने जा रही है। कंपनी क्षमता विस्तार व नए मॉडल पेश करने पर इस साल 1775 करोड़ रुपए निवेश करेगी। इस निवेश का एक बड़ा हिस्सा गुजरात कारखाने में जाएगा।
मोदी का ‘मेक इन इंडियाÓ अलग है कि इसकी मार्केटिंग बेहद आक्रामक है। जैसे पूरे देश में विभिन्न राज्य सरकारों ने निवेश आकर्षित करने के लिए हर साल इनवेस्टर्स मीट आयोजित करने शुरू किए, वैसे ही गुजरात ने भी एक आयोजन शुरू किया था। वहां देश-विदेश के तमाम उद्योगपति आते हैं। लेकिन उसकी पैकेजिंग और तौर-तरीका अलग था। बाकी राज्य इनवेस्टर्स मीट कराते थे, लेकिन मोदी ‘वाइब्रेंट गुजरातÓ कराते थे। बड़े पैमाने पर उसकी मार्केटिंग होती है। जानकार ‘मेक इन इंडियाÓ को भी वाइब्रेंट गुजरात के तर्ज की ही एक योजना के रूप में देखते हैं। यह भव्य है, इसकी मार्केटिंग और पैकेजिंग में कोई कोर कसर बाकी नहीं रखी गई है, लेकिन इस ‘मेक इन इंडियाÓ के तहत देश में आने वाले निवेश में गरीब और पिछड़े राज्यों के हिस्से में क्या आएगा यह मोदी की नीति एवं नियत पर निर्भर करता है।
निवेश या पलायन मध्यप्रदेश के लिए कुछ नहीं
इसका ही एक उदाहरण है। कई वर्षों की बातचीत के बाद दिल्ली, मुंबई औद्योगिकी कॉरिडोर का मामला आगे बढऩे लगा है। सरकार ने इस कॉरिडोर से जुड़े दो हिस्सों पर बुनियादी सुविधाओं के विकास के लिए 4318.28 करोड़ रुपये की योजना को मंजूरी दे दी है। यह फैसला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति की बैठक में किया गया। इसमें एक 22.5 किलोमीटर का हिस्सा गुजरात में है, जबकि दूसरा 8.3 किमी लंबा हिस्सा महाराष्ट्र में है। गुजरात के हिस्से के लिए 2784.83 करोड़ रुपए मंजूर किए गए हैं, जबकि महाराष्ट्र स्थित परियोजना के लिए 1533.45 करोड़ रुपए का प्रस्ताव मंजूर किया गया है। सरकार की तरफ से जारी सूचना के मुताबिक 22.5 किमी लंबा नेटवर्क दिल्ली- मुंबई औद्योगिक कॉरिडोर के धोलेरा विशेष आर्थिक क्षेत्र (गुजरात) में स्थापित होगा। इससे इस औद्योगिक क्षेत्र के पहले चरण में होने वाले कार्यों जैसे सड़क, पानी आपूर्ति, सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट जैसे काम किए जाएंगे। दूसरा नेटवर्क महाराष्ट्र के शेंड्रा बिडकिन औद्योगिक क्षेत्र में होगा। दोनों नेटवर्क पर काम चालू वित्त वर्ष के दौरान शुरू होगा और अगले दो वित्त वर्षों में पूरा कर लिया जाएगा। गौरतलब है कि संप्रग सरकार ने दिल्ली- मुंबई औद्योगिक कॉरिडोर की योजना बनाई थी, लेकिन उसके कार्यकाल में प्रगति की रफ्तार काफी धीमी रही है। सरकार इस कॉरिडोर को अंतरराष्ट्रीय स्तर के औद्योगिक क्षेत्र के तौर पर विकसित कर रही है। यह कॉरिडोर हरियाणा से निकलते हुए उत्तरप्रदेश, राजस्थान, मध्यप्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र तक फैला होगा। कॉरिडोर के दोनों तरफ कई औद्योगिक शहर बसाए जाएंगे। यह कॉरिडोर मोदी सरकार के ‘मेक इन इंडियाÓ कार्यक्रम के लिए भी काफी अहम होगा।
श्रम कानून में बड़े बदलाव की शुरुआत
अपनी महत्वाकांक्षी योजना की राह आसान करने के लिए प्रधानमंत्री ने श्रम कानून में बड़े बदलाव की शुरुआत की है। इसकी भी विभिन्न हलकों में काफी आलोचना हो रही है। इन बदलाव पर सवाल उठाने का सबसे पहला काम खुद संघ ने ही किया। भारतीय मजदूर संघ के महासचिव ब्रजेश उपाध्याय कहते हैं, ‘मजदूरों से जुड़ा फैसला करते समय प्रधानमंत्री ने मजदूर संगठनों से ही कोई बात नहीं की, यहां तक कि मजदूर संघ से भी नहीं। ऐसा लगता है कि औद्योगिक घरानों के हित साधने के लिए मोदी सरकार रास्ता बना रही है।Ó उद्योगपतियों के लिए सस्ता श्रम उपलब्ध कराने, मजदूरों के मानवाधिकारों के साथ खिलवाड़ करने से लेकर पूंजीपतियों के फायदे के लिए कुछ भी कर गुजरने के आरोप लगाए जा रहे हैं। सामाजिक कार्यकर्ता हिमांशु कुमार इसे कुछ इस तरह बयान करते हैं, ‘आपने कहा कि ‘मेक इन इंडियाÓ यानी विदेशी कंपनियों आओ, अपना माल भारत में बनाओ, यह काम तो अमीर देशों की कंपनियां कईं सालों से कर रही हैं, यह मुनाफाखोर कंपनियां उन्हीं देशों में अपने कारखानें खोलती हैं, जहां उन्हें सस्ते मजदूर मिल सकें और पर्यावरण बिगाडऩे पर सरकारें उन्हें रोक न सकें।Ó