क्या पुलिस और कानून द्वारा वर्षो से प्रतिष्ठित रीयल एस्टेट ,कॉलोनाइजर्स,सराफा व्यवसायी या कंपनियो के खिलाफ सीधे धोखाधड़ी व ब्रीच ऑफ़ ट्रस्ट की धाराओ 406,420,506,34 या महिला कर्मचारियों द्वारा सेक्सुअल हेरासमेंट,छेड़ छाड़ के मुक़दमे दर्ज करना जायज है।
प्रतिष्ठित रीयल एस्टेट, कॉलोनाइजर्स,सराफा व्यवसायी या अन्य ऐसी कंपनिया या प्रतिष्ठान जो पिछले कई वर्षो या दशको से बाज़ार में पूर्ण रूप से प्रशासनिक और कानूनी रूप से सभी मान्यता, आज्ञा और कागजात लेकर काम या व्यापार कर रहे है। करोडो रूपये का स्थाई इन्वेस्टमेंट किया है ,संपत्ति है ,सेकड़ो लोगो को नौकरी दे रखी है ,लाखो करोडो रूपये का सरकार को टेक्स चुकाते है।
वर्षो या दशको से पुरे परिवार बेटा, बेटी, पत्नी माता पिता ,रिश्तेदारों और दोस्तों के साथ शहर के स्थाई निवासी है.. कई सालो और यहाँ तक दशको से बाज़ार में ग्राहकों के साथ लेंन देन करते आ रहे है के खिलाफ मिली किसी भी शिकायत पर सीधे अपराधिक प्रकरण ऍफ़ आई आर दर्ज कर उसके खिलाफ न्यायालय में मुकदमा दर्ज करवाकर लम्बी ,कठोर,जटिल और अपमानजनक कानूनी प्रक्रिया से गुजारकर न्यायालय से निर्दोष होने तक की नारकीय व्य्वाश्था में डालना उचित है।
.रीयल एस्टेट ,कॉलोनाइजर्स,सराफा व्यवसायी या अन्य ऐसी कंपनिया के व्यवसाय में कई बार ग्राहक व्यापारी या संसथान को अग्रिम भुगतान करता है या उसके प्रोजेक्ट में धन निवेश करता है, उसके बदले व्यापारी द्वारा उसे तय समय में या तो तैयार किये गए उत्पाद को देना होता है या निवेश से सम्बंधित जो वादा किया गया है वह वडा निभाना होता है। चूँकि ये बड़े प्रोजेक्ट होते है, करोडो अरबो का इन्वेस्टमेंट रहता है ,केंद्र सरकार,राज्य सरकार और लोकल नगरीय या ग्रामीण सरकारों की नीतिया ,नियम व कानूनों के अलावा सरकारी लाल फीताशाही ,भ्रष्टाचार ,राजनेतिक दवाब की वजह से भी प्रोजेक्ट तय शुदा समय में पूरा नहीं हो पाते है।
इसके अलावा बाज़ार में मंदी ,सभी ग्राहकों से समय पर पूरा पैसा न आ पाना ,बाज़ार में उतार चढ़ाव व फाइनेंसरो और प्रमोटरो द्वारा सही समय पर धन की उपलब्धता न करवाना या धोखा देने की वजह से भी कुछ समय के लिए समस्याए पैदा कर देती है।
कई बार कंपनी या संसथान में पार्टनरो ,डायरेक्टरो या संस्थान में काम करने वाले कर्मचारियों द्वारा धोखा किया जाता है उसकी वजह से भी संसथान या कंपनी को नुकसान उठाना पड़ता है।
ऐसे स्थिति में जहा एक तरफ मालिक इन समस्याओ के हल के लिए संघर्ष कर रहा होता है वही दूसरी तरफ ग्राहक संसथान पर अपना विश्वास खोने लगता है। चूँकि व्यापारी बाज़ार में अपनी और संस्थान की साख न ख़राब हो जाय इस डर से ग्राहक को सच नही बताकर टालता रहता है। ऐसी दशा में ग्राहक उस पर से पूरा विश्वास खो देता है।
अब ऐसी स्तिथि में ग्राहक या तो पुलिस थाने या न्यायालय में अपने सभी कागजातों , रसीदों के साथ या तो अपने पैसे या उत्पाद को वापस दिलाने की गुहार करता है और फिर चलता है पुलिस और कानून का दमन और विनाश कारी खेल।
कानून से प्राप्त अधिकारों के तहत पुलिस सीधे धारा 406,420,506,34 के तहत धोखाधड़ी का मुकदमा दर्ज करती है। जिसमे संस्थान या कंपनी के सभी जिम्मेदार अपराधी बन जाते है। भले ही संस्थान या व्यापारी की नीयत और कृत्य में बेईमानी से उत्प्रेरित कर किसी की सम्पति या रकम को हडपने का कोई काम न किया गया हो और न ही किसी को जान से मारने या धमकाने का कृत्य किया हो। इसी प्रकार महिला कर्मचारियों द्वारा भी सेक्सुअल हरासमेंट के झूठे मुक़दमे बड़े लोगो के खिलाफ दर्ज किये जा रहे है।
इस तरह सिर्फ कानून और मुक़दमे की वजह से न सिर्फ एक संस्थान की असमय मौत हो जाती है वरन उसका मालिक और उसका परिवार बर्बादी की कग्गार पर आकर खड़ा हो जाता है।