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“छात्रों को अपनी कोचिंग में एडमिशन कराने के आपराधिक हथकंडे”

-करोड़ों रुपए में टॉपरों को खरीदकर अपनी कोचिंग की सफलता बताना।
-IIT में सफल छात्राओं को अपनी कोचिंग का बताकर फर्जी विज्ञापन देना।
-भव्य आयोजन कर लाखों-करोड़ों रुपए के इनाम का लालच।
-विशेषज्ञ फेकल्टी न के बराबर।
-पांच साल के  के प्रश्नपत्रों को तोड़-मोड़कर स्टडी मटेरियल बनाना।

इंदौर। शिक्षा नगरी के नाम से विख्यात कोटा शहर राजस्थान में ही नहीं, बल्कि पूरे भारत देख में विख्यात है और इसकी प्रसिद्धि को सुन- सुनकर हर वर्ष हजारों की तादाद में अपना भविष्य का निर्माण करने की चाह में विद्यार्थी कोटा शहर में आते हैं, लेकिन कोटा शहर के कोचिंग संस्थानों की घोर व्यवसायिकता का आलम यह है ्कि विद्यार्थी भविष्य निर्माण को छोड़कर अपनी जिंदगी ही दांव पर लगा बैठते हैं, पिछले हफ्ते कोटा में चार छात्रों ने असमय फांसी के फंदे पर झूलकर मौत को गले लगा लिया। जिसके पीछे मुख्य कारण शहर के प्राइवेट कोचिंग संस्थानों ने अपनी मनमर्जी की फीस लगाई हुई है, जिसके चलते छात्र-छात्राओं पर कुछ दबाव तो वहीं से बढ़ जाता है। अधिक फीस भरकर प्रवेश मिलने के बाद भी शहर की विख्यात कोचिंग संस्थाएं छात्र-छात्राओं को पढ़ाई का उक्त माहौल नहीं दे पाती है। ये कोचिंग संस्थाएं कोटा शहर की ही नहीं, बल्कि देश भर में विख्यात मानी जाती हैं। इनमें कोटा शहर की एक सबसे बड़ी कोचिंग इंस्टीट्यूट को सबसे ज्यादा उपलब्धि प्राप्त है। अगर हम बात करें विद्यार्थियों की आत्महत्या की, तो बीते पांच सालों में देश की इस नामी कोचिंग इंस्टीट्यूट के विद्यार्थियों ने सबसे ज्यादा आत्महत्या को गले लगाया है और जिनकी मौत की खबर संस्थान के मैनेजमेन्ट डॉयरेक्टर द्वारा इस कदर छुपाई जाती है कि पुलिस के अलावा मृतविद्यार्थी को भी पता नहीं होता है कि मेरी मौत की फाइल किस अंजाम पर जाकर बन्द हुई होगी। ऐसा ही एक मामला पिछले सप्ताह प्रकाश में आया। इसके मुताबिक, कोचिंग की भारी-भरकम फीस जमा न कर पाने की बेबसी केचलते एकपिता बेटी को मेडिकल परीक्षा की तैयारी केलिए एलेन कोचिंग में एडमिशन नहीं दिला पाए तो पिता ने कोटा में ही एकहोटल में फांसी लगा ली। बेटी भी उसी कमरे में मृत मिली। उत्तरप्रदेश के बदायंू निवासी कुलदीप रस्तोगी (50) अपनी बेटी दीपांशी रस्तोगी (18) क ो कोचिंग करवाने कोटा लाए थे। वो स्टेशन स्थित होटल गायत्री रेसीडेंसी में रुके थे। पुलिस को मौकेसे एक रसीद मिली है, जिससे लगता है कि कुलदीप ने एलेन में फीस जमा करवाई थी। कुलदीप रस्तोगी ने सुसाइड नोट में लिखा-“मैं अपनी मौत का खुद जिम्मेदार हूं। मैं आर्थिक तंगी से परेशान होकर आत्महत्या कर रहा हूं। बेटा, मैं आर्थिक तंगी के चलते तुम्हारा विकास नहीं कर पाया, हो सके तो मुझे माफ कर देना। शिक्षा नगरी कोटा अब सुसाइड जोन बनता जा रहा है। बढ़ती प्रतिस्पर्धा और मानसिक दबाव के चलते कोटा में ऐसे मामले लगातार बढ़ रहे हैं, जिसके चलते शिक्षा नगरी कोटा अब बदनाम होने लगी है।
मानसिक तनाव से जूझते बच्चों के ऐसे कृत्य से परिजनों में भी भय की स्थिति व्याप्त है। मनोचिकित्सकों का मानना है कि सालभर कठिन परिश्रम के बाद जब कोई परीक्षार्थी सफल नहीं हो पाता है तो डिप्रेशन में आकर ऐसा कदम उठाता है। वहीं, पेरेंट्स काउंसलिंग भी उन बच्चों के लिए जरूरी है जो घर से दूर पहली बार आते हैं और कड़ी प्रतिस्पर्धा करते हैं। कोटा में रहकर पढ़ाई करने वाले छात्रों की औसत आयु 20 साल है, जो 12 वीं ऊतीर्ण करने के बाद मेडिकल और इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए यहां आते हैं। ें 12-12 घंटे पढ़ाई के बाद भी कठिन परिश्रम के चलतेे मानसिक तनाव लगातार बढ़ता जाता है और जब परिणाम विपरीत मिलते हैं तो छात्र आत्महत्या जैसे भयानक कदम उठाते हैं।

कोटा के कोचिंग संस्थानों की बेतहाशा फीसें डाल रही हैं पेरेंट्स व छात्रों पर मानसिक दबाव

कोटा के कोचिंग संस्थानों द्वारा इंजीनियरिंग व मेडिकल प्रवेश परीक्षाओं में छात्रों को कोचिंग देने के नाम पर लाखों रुपए फीस के माध्यम से वसूल रही हैं। जबकि सप्ताह में मात्र 9 घंटे पढ़ाया जाता है। कोटा के विख्यात एलेन कोचिंग इंस्टीट्यूट की फीस पर एक नजर में देखें तो ्रढ्ढक्करूञ्ज/क्करूञ्ज के लिए 1 लाख 70 हजार रुपए व ढ्ढढ्ढञ्ज, छ्वश्वश्व व अन्य इंजीनियरिंग के लिए 2.10 लाख रुपए वसूले जाते हैं। वो भी मात्र दो से चार किस्तों में। किस्तें समय पर नहीं जमा करने पर भारी पेनल्टी के साथ छात्र का एडमिशन निरस्त कर दिया जाता है। इस वजह से न सिर्फ छात्र वरन् उनके अभिभावक भी मानसिक दबाव की वजह से डिप्रेशन का शिकार हो जाते हैं। इसका असर उनकी पढ़ाई पर पड़ता है। वह अपने माता-पिता की मजबूरी को भी समझते हैं कि उनके माता-पिता इतनी भारी-भरकम फीस का बंदोबस्त कैसे करेंगे? और यदि वो यदि कर्ज के माध्यम से करते हैं तो बच्चे पर सफल होने का इतना दबाव रहता है कि वह दबाव को सहन नहीं कर पाता है और यही मुख्य वजह बनती है छात्रों में आत्महत्या की प्रवृत्ति की। पिछले कुछ वर्षों में तकरीबन सौ से ज्यादा छात्रों ने डिप्रेशन में आकर आत्महत्या को गले लगाया है।

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