महिला सुरक्षा कानूनों का होता है दुरुपयोग
आईपीसी की धारा ४८२ के तहत आप अपने खिलाफ लिखाई गई रिपोर्ट को चैलेंज कर सकते हैें
घबराएं नहीं, हाल के वर्षों में आए सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के फैसलों पर नजर रखें
वर्तमान में भारतीय संविधान तथा दंड संहिता में कुछ ऐसे कानून हैं जिन्हें समाज के वंचित वर्गों की भलाई के लिए बनाया गया है परंतु इनका इस्तेमाल दूसरों को फंसाने तथा गलतबयानी में अधिक हो रहा है। आइए जानते हैं क्या हैं ये कानून और कैसे खुद को इनसे बचाया जा सकता है। दहेज तथा घरेलू हिंसा कानून की ही तरह एंटी सेक्सुएल हरेसमेंट कानून का भी कुछ महिलाओं द्वारा दुष्प्रयोग किया जाता है। एक सरकारी रिपोर्ट के द्वारा इस तरह की जितनी भी शिकायतें दर्ज की जाती हैं उनमें काफी मात्रा में झूठी पाई जाती हैं जो कि दुर्भावना से परिवारों की आपसी झगड़े के चलते ऑफिस में साथ कम करने वाले या बॉस से झगड़ा होने पर लिखवा दी जाती है। हालांकि रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि वास्तविक मामलों में पीडि़ताएं शर्म या पारिवारिक दबाव के चलते शिकायत ही दर्ज नहीं कराती हैं जिन्हें आगे लाने की जरूरत है। दहेज निवारण कानून का इस समय दुष्प्रयोग स्पष्ट देखा जा सकता है। एक सरकारी रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2012 में दहेज समस्या तथा घरेलू हिंसा से जुड़ी कुल 4,26,922 शिकायतें आई थीं। इनमें से मात्र 6,916 में केस चलाकर आरोपी को अपराधी सिद्ध किया गया तथा सजा दी गई। शेष में या तो आरोपी को बरी कर दिया गया या फिर समझौते द्वारा कोर्ट में शिकायत खत्म कर दी गई। रिपोर्ट के अनुसार सिर्फ 12.61 फीसदी शिकायतें ही सही पाई गई। बाकी सब या तो गलत थी या आपसी मनमुटाव के चलते दर्ज की गई थी। दहेज निवारण कानून की जद में न केवल आम आदमी वरन सुप्रीम कोर्ट के माननीय जज, वरिष्ठतम सरकारी अधिकारी तथा नेतागण तक आ चुके हैं। इस तहत दर्ज कानून शिकायत गैरजमानती माना जाता है इसीलिए इसमें जिनका भी नाम होता है पुलिस को उन सभी को अरेस्ट करना होता है। लेकिन जुलाई 2014 में सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश के बाद से पुलिस इस मामले में आरोपी को सीधे गिरफ्तार कर नहीं कर सकती वरन उसे मजिस्ट्रेट की अनुमति लेनी होती है। अपने इस आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने घरेलू हिंसा का झूठा केस दर्ज कराने पर महिला पर एक लाख रूपए का जुर्माना भी लगाया था। हाल ही में आम आदमी पार्टी के कानून मंत्री सोमनाथ भारती भी इसी धारा के तहत दर्ज किए गए अपराध में गिरफ्तार किए गए थे।
एंटी रेप लॉ तथा लिव इन रिलेशनशिप रेप
देश की राजधानी दिल्ली में हुए निर्भया गैंगरेप कांड के बाद सरकार ने नया एंटी रेप लॉ बनाया जिसमें कड़े प्रावधान बनाए गए। यही नहीं महिला के अंगों में किसी भी तरह की जबर्दस्ती करना भी रेप माना गया है। साथ ही रेप करने में किसी भी तरह की मदद करना; चाहे वो निगरानी करना या वीडियो बनाना ही हो, को भी रेप की श्रेणी में रखा गया है। नए कानून के चलते एंटी रेप लॉ देश में महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करता है। परंतु इस कानून का भी दुष्प्रयोग देखने में आ रहा है। लिव इन रिलेशन में रहने वाले कपल्स बाद में किसी मनमुटाव के या अन्य कारणों से अलग हो जाते हैं तो महिलाएं पुरूषों पर शादी का झांसा देकर रेप करने का आरोप लगा देती है। हाल ही में ऐसे ही एक मुकदमे की सुनवाई करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा था कि लंबे समय तक लिव इन में रहने के बाद रेप का केस दर्ज नहीं कराया जाना चाहिए क्योंकि ऐसे मामलों में स्त्री-पुरूष के बीच हर मामले में आपसी सहमति होती है जिसे बाद में आकांक्षाओं के पूरा न होने पर रेप का नाम दे दिया जाता है। हाई कोर्ट के इस निर्णय के बाद से पुलिस लिव इन रिलेशन में हुए रेप के मामलों की जांच सावधानी से करती है तथा ठोस सबूत के बाद ही आरोपी को गिरफ्तार कर सकती है।
झूठी पुलिस शिकायतों से खुद को ऐसे बचाएं
इसी तरह कुछ अन्य कानूनों का भी दुष्प्रयोग किया जाता है परन्तु उनका प्रभाव इतना भीषण नहीं होता है। ये तीनों ही कानून गैर जमानती श्रेणी में आते हैं तथा किसी भी निर्दोष व्यक्ति का जीवन बर्बाद करने की सामथ्र्य रखते हैं। अक्सर ऐसे मामलों में जिनके खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई गई है, वे पुलिस और कोर्ट के कानूनी झंझटों में फंस जाते हैं और उनका धन, समय और जीवन बर्बादी की कगार पर चल पड़ता है। कानून की अल्प जानकारी के चलते बहुत से लोगों को तो यह भी पता नहीं होता कि ऐसी झूठी शिकायतों के खिलाफ कार्यवाही कर वो अपने आपको मिलने वाली कानूनी, सामाजिक और आर्थिक प्रताडऩाओं से खुद को बचा सकते हैं। भारतीय संविधान में भारतीय दंड संहिता की धारा 482 ऐसा ही एक कानून है जिसके उपयोग से आप फिजूल की परेशानियों से बच सकते हैं।
क्या है धारा 482
भारतीय दंड संहिता की धारा 482 के तहत आप अपने खिलाफ लिखाई गई एफआईआर को चैलेंज करते हुए हाईकोर्ट से निष्पक्ष न्याय की मांग कर सकते हैं। इसके लिए आपको अपने वकील के माध्यम से हाई कोर्ट में एक प्रार्थनापत्र देना होता है जिसमें आप पुलिस द्वारा दर्ज की गई एफआईआर पर प्रश्नचिन्ह लगा सकते हैं। यदि आपके पास अपनी बेगुनाही के सबूत जैसे कि ऑडियो-वीडियो रिकॉर्डिंग, फोटोग्राफ्स, डॉक्यूमेंट्स हो तो आप उनको अपने प्रार्थना पत्र के साथ संलग्न करें। ऐसा करने से हाई कोर्ट में आपका केस मजबूत हो बन जाता है और आपके खिलाफ दर्ज एफआईआर कैंसिल होने के आसार मजबूत हो जाते हैं।
कैसे करें धारा 482 का प्रयोग
धारा 482 का प्रयोग दो तरह से किया जाता है। पहला प्रयोग अधिकतर दहेज तथा तलाक के मामलों में किया जाता है। दूसरा प्रयोग आपराधिक मामलों में किया जाता है। मान लीजिए किसी ने मारपीट, चोरी, बलात्कार अथवा अन्य किसी प्रकार का षड्यंत्र रच कर आपके खिलाफ पुलिस में झूठी एफआईआर लिखा दी है। आप हाई कोर्ट में धारा 482 के तहत प्रार्थना पत्र दायर कर अपने खिलाफ हो रही पुलिस कार्यवाही को तुरंत रुकवा सकते हैं। यही नहीं हाई कोर्ट आपका आवेदन देख कर संबंधित जांच अधिकारी जांच करने हेतु आवश्यक निर्देश दे सकता है। इस तरह के मामलों में जब तक हाई कोर्ट में धारा 482 के तहत मामला चलता रहेगा, पुलिस आप के खिलाफ कोई कानूनी कार्यवाही नहीं कर सकेगी। यही नहीं यदि आपके खिलाफ गिरफ्तारी का वारंट जारी है तो वह भी तुरंत प्रभाव से हाई कोर्ट के आदेश आने तक के लिए रुक जाएगा।
ध्यान रखें इन बातों का
इन कानून के तहत आप को एक फाइल तैयार करनी होती है जिसमें एफआईआर की कॉपी तथा आपके प्रार्थना पत्र के साथ-साथ आपको जरूरी सबूत भी लगाने होते हैं। यदि एविडेन्स नहीं है तो आप अपने वकील से सलाह मशविरा कर पुलिस में दर्ज शिकायत में कमियों को ध्यान से देख कर उनका उल्लेख करें। इसके अतिरिक्त आप यदि आपके पक्ष में कोई गवाह है तो उसका भी उल्लेख करें।
कानूनी केस में ध्यान रखने योग्य बातें
इन सभी बातों के अलावा आप जब भी ऐसे हालात का शिकार हों तो घबराएं नहीं। वरन ऐसे मुकदमों पर हाल के वर्षों में आए देश के विभिन्न हाईकोर्ट तथा सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का अध्ययन करें। इन मुकदमों की जानकारी आपको इंटरनेट से सहज ही मिल सकती है। उनकी पूरी जानकारी लेकर खुद के केस से उसकी तुलना करें तथा किसी अनुभवी वकील की सलाह लें। वकील चुनते समय कोशिश करें कि जिस वकील का पिछला रिकॉर्ड अच्छा रहा हो उसे ही हायर करें। वह आपके केस को सही तरीके से रिप्रजेन्ट कर आपकी झूठे मुकदमे से सुरक्षा सुनिश्चित कर सकेगा। वकील का चुनाव महत्चपूर्ण होता है।