देश के न्यायालयों में चुने गए
संविधान के अनुसार जिस संवैधानिक संस्था को निष्पक्ष न्याय देने की जिम्मेदारी दी गई थी। आज वही न्याय के कटघरे में खड़ी होती दिखाई दे रही है। देश में लगातार बहस चल पड़ी है कि न्यायपालिका की निष्पक्षता को कैसे बरकरार रखा जाए और इसी बहस के बीच न्याय देने वाले सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के जजों को कैसे चुना जाए इस पर बहस होती रही है। वैसे तो जजों के चुनने की व्यवस्था कोलेजियम पर कई जाने-माने जज भी गलत मान चुके हैं लेकिन यह आंकड़ा और भी चौका देता है कि देश के भीतर उपस्थित 13 उच्च न्यायालयों में 52 प्रतिशत या 99 जज, बड़े वकीलों के रिश्तेदार चुने गए। यह आंकड़ा न्यापालिका के भ्रष्टाचार को साबित करने के लिए पर्याप्त है और पिछले 22 सालों से देश में जजों को इसी तरह चुना गया। 2014 के बाद केंद्र में मोदी सरकार आने के बाद जजों की नियुक्ति का एक नया तरीका एनजेएसी (राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग) अमल में लाया गया, उसे संसद में भी पास कर दिया गया लेकिन न्यायपालिका ने अपने बीच में राजनीतिक दखलंदाजी ठीक नहीं समझी और एनजेएसी जैसे प्रावधान से जजों के चुनने के तरीके को खारिज कर उसी कोलेजियम को लागू कर दिया, जिसके भयावह आंकड़े यह भी बताते हैं कि 22 साल पुरानी इस व्यवस्था में जजों और न्यायपालिका से जुड़े लोगों ने कैसे अपने ही रिश्तेदारों को अपना उत्तराधिकारी चुन लिया।
चेलामेश्वर ऐसे जज थे, जिन्होंने कोलेजियम को भ्रष्ट बताया
हाल ही में कोलेजियम और एनजेएसी पर जिन पांच जजों की पीठ ने फैसला सुनाया, उनमें एक जज जे. चेलामेश्वर का दर्द फैसले के वक्त उभर आया। वह एकमात्र ऐसे जज थे, जिन्होंने जजों को चुनने की कोलेजियम व्यवस्था का समर्थन नहीं किया। उन्होंने साफ तौर पर कहा कि केलिजियम की व्यवस्था एकदम अपारदर्शी है इस बारे में जनता कुछ नहीं जान सकती। उन्होंने इस दौरान भ्रष्टाचार के आरोपों के बावजूद एक जज के विवादित प्रमोशन का भी उदाहरण दिया। चेलामेश्वर के अनुसार न्यायिक स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के कई तरीके हैं। इसमें जजों के चुनने का अधिकार बनाए रखना भी एक है। लेकिन यह कार्यपालिका द्वारा सुझाए गए मॉडल को खारिज करने की वजह नहीं हो सकती, जिसमें लोगों की इच्छा भी शामिल होती हैं। उन्होंने कहा कोलेजियम की व्यवस्था न तो न्यायपालिका के लिए लाभदायक है और न ही देश हिट में। पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस भरूचा ने 15 वर्ष पहले कहा था कि हाईकोर्ट के 20 फीसदी जज भ्रष्ट हैं। वहीं पूर्व न्यायाधीश मार्कंडेय काटजू ने चीफ जस्टिस सहित 50 फीसदी जजों को भ्रष्ट करार दिया।
विश्वास न्यायपालिका पर बना है
देश की अदालतों में लगभग 3,07,05,153 केस आज भी लंबित पड़े है.देश के कोर्ट कचहरियों में फाइलों की संख्या बढ़ती जा रही है,लंबित मुकदमों की फेहरिस्त हर रोज़ बढ़ती जा रही है.आदालतों में भ्रष्टाचार के मामलें आए दिन सामने आ रहें है .फिर भी हमारे लिए गौरव की बात है कि आज भी आमजन का विश्वास न्यायपालिका पर बना हुआ है.अगर उसे शासन से न्याय की उम्मीद नही बचती तब वो न्यायपालिका ने शरण में जाता है.ताकि उसे उसका हक अथवा न्याय मिल सकें.लेकिन न्यायपालिका की सुस्त कार्यशैली एवं इसमें बढ़ते भ्रष्टाचार आदालतों की छवि को धूमिल कर रहें.जिसे बचाने की चुनौती कोर्ट के सामने है.