Indian Prime Minister Narendra Modi on stage in front of thousands of fans at Allphones Arena Sydney, Monday, Nov. 17, 2014. The  hugely popular politician shares the stage with other Australian and Indian dignitaries and performers. (AAP Image/Jane Dempster) NO ARCHIVING

कॉर्पोरेट कंपनियों के बड़े रिटेल आउटलेट लिप्त हैं जमाखोरी में
बेस्ट प्राइस पर छापे, एक करोड़ से ज्यादा की दालें जब्त

  • पिछले हफ्ते खाद्य विभाग की दो टीमों ने बेस्ट प्राइस के करोंद और होशंगाबाद रोड स्थित स्टोर पर छापे मारे। इस दौरान स्टॉक रजिस्टर ठीक नहीं मिलने पर यहां से एक करोड़ रुपए से ज्यादा कीमत की दालें जब्त कर ली गईं।
  • इस दौरान विभिन्न प्रकार की लगभग 229 ङ्क्षक्वटल दालें जब्त की गईं। इसमें 177 ङ्क्षक्वटल तुअर दाल शामिल है। तुअर दाल की मौजूदा कीमत 30 लाख रुपए बताई जा रही है। वहां से कुल 36 लाख रुपए की दालें जब्त की गईं।
  • करोंद के बेस्ट प्राइस स्टोर पर छापा मारा। वहां से 513 ङ्क्षक्वटल 26 किलो अलग-अलग किस्म की दालें कब्जे में लीं। इनकी बाजार में कीमत करीब 85 लाख रुपए बताई जा रही है। इसमें 279 ङ्क्षक्वटल तुअर दाल है। इसका मूल्य लगभग 44 लाख रुपए है।

स्टोर में मिली ये कमियां

  •  रजिस्टर में दालों की खरीदी-बिक्री का रिकॉर्ड नहीं रखा गया था
  • एक किलोग्राम के पैकेट में फुटकर दाल भी बेची जा रही थी
  • कितना स्टॉक मंगाया था, इसकी जानकारी नहीं
  • ठ्ठ स्टोर के बाहर स्टॉक बोर्ड नहीं लगाया
  • आज की कीमतें प्रदर्शित नहीं की गई

बुनियादी आवश्यकताओं के लिए मोहताज जनता बढ़ी महंगाई

सोई गैस की कालाबाजारी, खाद की कालाबाजारी, केरोसिन की कालाबाजारी, रेत की कालाबाजारी, दाल की कालाबाजारी, सरकारी दवाइयों की कालाबाजारी। सरकारी खाद्य गेहूं, चावल की कालाबाजारी…। इस तरह की कालाबाजारियों को इस देश का आम आदमी पिछले 67 सालों से देखता, सुनता और भोगता आ रहा है, लेकिन अब तो हद होती जा रही है। आम आदमी के भोजन से जुड़ी अति आवश्यक खाद्य सामग्री प्याज, तेल, दाल जैसी निहायत जरूरी खाद्य वस्तुओं की जमाखोरी कर कृतिम तौर से कमी पैदा कर लालची व्यापारियों द्वारा तीन से चार गुने मुनाफे में बेचने का दौर चल पड़ा है। इस दौर को समझाने में सरकार को 3 से 4 महीने तब लगते है, जब पानी सिर के ऊपर हो जाता है। देश सहित प्रदेश में भी दिन-प्रतिदिन महंगाई आसमान छू रही है। आम आदमी के भोजन-प्याज ने गरीब की आंखों से आंसू निकाल दिए हैं। इसके अलावा अन्य सब्जियों व दालों के भावों ने भी लोगों की हालत खस्ता कर दी है। कालाबाजारी होने से इन वस्तुओं के दामों में बेतहाशा बढ़ोतरी हो रही है, लेकिन सरकारी स्तर पर इन्हें नियंत्रित करने के कोई प्रयास नहीं किए जा रहे हैं। इससे आम आदमी की कमर टूट रही है और लोगों के घर के बजट बिगडऩे से उनके सामने आर्थिक संकट भी खड़ा हो रहा है। रोजमर्रा की वस्तुओं के दाम बढऩे से आम आदमी ठगा-सा महसूस कर रहा है, लेकिन उसके हाथ में कुछ नहीं होने से वह चुप है। वहीं व्यापारी जमाखोरी कर प्याज, सब्जियों व दालों की कृत्रिम कमी पैदा कर रहे हैं। इससे बाजार में इन चीजों के दाम तेजी से बढ़ रहे हैं। दाम बढऩे के बाद व्यापारी महंगे में इन वस्तुओं को बेच कर तगड़ा मुनाफा कमा रहे हैं। गौरतलब है कि इन दिनों प्याज, सब्जियों व दालों के भावों में अनावश्यक तेजी आ रही है। कभी प्याज के भाव 70 से 90 रुपए किलो तक हो जाते हैं, तो कभी टमाटर 50 रुपए प्रति किलो में बिकने लगता है, वहीं अन्य सब्जियों के दाम भी बहुत अधिक हैं। दाल और सब्जियों के दाम के साथ-साथ विभिन्न वस्तुओं के जो दाम बढ़ रहे हैं उसका सीधा संबंध जमाखोरों की जमाखोरी है। मुख्य बात यह है कि उद्योगपतियों के मुनाफे की दर हजारों गुना बढ़ी है। उसके ऊपर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है। सरकार की नीतियों के कारण 200 रुपए किलो अरहर की दाल हो गई है। अन्य दालें भी महंगी हो गई हैं। दूसरी ओर प्रधानमंत्री विदेश यात्राओं या चुनाव सभाओं से फुर्सत ही नहीं मिल पा रही है। सरकार ने खाद्य सुरक्षा योजना इसलिए चलाई है कि गरीबों को इसका पूरा लाभ मिल सके और कम कीमत पर उन्हें भी अनाज उपलब्ध हो, लेकिन आज-कल इस योजना का फायदा कुछ बिचौलियों द्वारा अपनी कालाबाजारी करने के लिए उठाया जा रहा है। जुलाई 2014 में महंगाई पर काबू पाने के उपायों पर राज्यों के खाद्य मंत्रियों के साथ अहम बैठक में वित्तमंत्री अरुण जेटली महंगाई के लिए जमाखोरों को जिम्मेदार ठहरा चुके हैं। उक्त बैठक में जेटली ने कहा था कि खाद्यानों की पैदावार बढ़ी है, लेकिन जमाखोरों के कारण महंगाई बढ़ रही है और राज्य सरकारों को निर्देश दिए थे कि जमाखोरों के खिलाफ जल्द से जल्द सख्त कार्रवाई करें। वहीं खाद्य मंत्री रामविलास पासवान ने भी मंहगाई के लिए जमाखोरों को जिम्मेदार ठहराया था। पासवान ने कहा था कि जमाखोर, देशद्रोह का काम कर रहे हैं। उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी चाहिए।

जमाखोरों को कमाने का भरपूर मौका दिया सरकार ने

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छले साल अगस्त में थोक बाजार में तुअर दाल की कीमत 70 रुपए तथा खुदरा बाजार में 100 रुपए प्रति किलो थी। चालू साल में मार्च के बाद तुअर दाल की कीमतें धीरे-धीरेे बढ़ते हुए अगस्त 2015 में अचानक थोक बाजार में 150 रुपए तथा खुदरा बाजार में 180 रुपए प्रति किलो तक जा पहुंची। तुअर दाल की कीमतों में बढ़ोतरी देखकर निम्न एवं मध्यम आमदनी वर्ग के उपभोक्ताओं ने उड़द, मूंग तथा मसूर की दाल का अधिक उपयोग करना प्रारम्भ कर दिया। इससे इन दालों की कीमतों में भी वृद्धि होनी प्रारंभ हो गई। अक्टूबर में अनेक स्थानों पर तुअर दाल की कीमत 210 रुपए तक तथा उड़द की दाल की कीमत 190 रुपए किलो तक जा पहुंची।
इस प्रकार दालों की कीमतें आसमान छूने के कारण दालों की महंगाई ने दालों के संकट का रूप ले लिया। दाल के संकट से निबटने के लिए बाजार में दाल की पूर्ति बढ़ाने के लिए सरकार ने 7000 टन दाल का आयात किया। इसके बावजूद कीमतों में कमी न हो पाने के कारण सरकार को आभास हुआ कि व्यापारियों द्वारा दाल की जमाखोरी की जा रही है। दाल के जमाखोरों और कालाबाजारी करने वालों के खिलाफ छापा डालकर नकेल कसने की कार्रवाई से जो सार्थक परिणाम निकले हैं, उससे साफ है कि बाजार में महंगी होती दालों का कारण उपज की कमी नहीं था। देश के 8 राज्यों में छापेमारी से 75 हजार टन दाल की जब्ती यह दर्शाता है कि दाल की कोई कमी नहीं थी। व्यापारियों ने जमाखोरी करके करोड़ों रुपए कमाते हुए आम जनता की जेबें खाली कर दीं। जमाखोरी करके दाल को कई गुना ज्यादा में बेचकर बड़ी राशि कमाने का उन्हें अच्छा अवसर मिला।
केन्द्र सरकार के खाद्य एवं आपूर्ति मंत्रालय ने दालों की जमाखेारी रोकने के लिए पिछली 18 अक्टूबर को आयातकर्ताओं, व्यापारियों तथा दाल मिलों के स्टाक रखने की अधिकतम सीमा तय कर दी। केन्द्र सरकार की सलाह पर राज्य सरकारों ने दाल की जमाखोरी करने वाले व्यापारियों की दाल जब्त करने हेतु छापामार कार्रवाई पहले ही प्रारम्भ कर दी थी। केन्द्रीय खाद्य एवं आपूर्ति मंत्रालय द्वारा 24 अक्टूबर को जारी आधिकारिक बयान के अनुसार, राज्य सरकारों द्वारा अत्यावश्यक सेवाओं के तहत कुल 13 राज्यों में 6077 छापामार कार्रवाई कर निर्धारित सीमा से अधिक दाल का स्टॉक पाए जाने पर 74 हजार 846 मीट्रिक टन दाल की जब्ती की जा चुकी है। ़महाराष्ट्र से सबसे अधिक 46,397 मीट्रिक टन दाल अर्थात कुल जब्त दाल की आधे से भी अधिक दाल जब्त की गई। दूसरे स्थान पर कर्नाटक है, जहां से 8755 मीट्रिक टन दाल जब्त की गई। दाल जब्ती में बिहार 4934 मीट्रिक टन, छत्तीसगढ़ 4530 मीट्रिक टन, मध्यप्रदेश 2295 मीट्रिक टन तथा राजस्थान 2222 मीट्रिक टन के नाम उल्लेखनीय है। इन छापामार कार्रवाइयों के कारण तुअर दाल की कीमत 200 रुपए किलो पर थम गई है तथा कुछ बाजारों में यह 180 से 190 रुपए किलो पर बिक रही है किन्तु सबसे बड़ी समस्या तुअर दाल की कीमत 150 रुपए प्रति किलो से नीचे ले जाने की है। वैसे अभी भी कुछ नगरों में कुछ दुकानों पर 150 से 160 रुपए के बीच तुअर दाल बेची जा रही है, किन्तु कुछ जानकार लोगों का कहना है कि इस सस्ती तुअर दाल में खेसरी दाल की मिलावट की संभावना है। उल्लेखनीय है कि खेसरी दाल को स्वास्थ्य के लिए हानिकर माना जाता है।
केन्द्र सरकार द्वारा दाल की कीमतों में कमी लाने के लिए उठाए कदमों में दाल का 40 हजार टन का बंपर स्टॉक तैयार करना, दाल के निर्यात पर प्रतिबंध लगाना, फ्यूचर ट्रेडिंग पर रोक लगाना, दाल के आयात पर लगने वाले शुल्क को शून्य प्रतिशत करना तथा 3000 टन दाल का आयात करने का निर्णय उल्लेखनीय है। पिछले 23 अक्टूबर को दाल के आयातकर्ता व्यापारियों ने वित्तमंत्री जेटली से मुलाकात में कहा कि यदि सरकार आयात को सुगम बनाएं तथा आयातकर्ताओं पर स्टॉक सीमा का प्रतिबंध समाप्त कर दें तो आयातकर्ता 135 रु. प्रति किलो पर कीमत पर प्रति दिन 100 टन अर्थात 1 लाख किलो तुअर दाल सरकार को उपलब्ध कराने को तैयार हैं। कुछ राज्य सरकारों द्वारा अक्टूबर के तीसरे सप्ताह से चुनिंदा केन्द्रों पर 135 से 140 रु. प्रति किलो तुअर दाल बिक्री की व्यवस्था की गई हैै।

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