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RD संवाददाता,इंदौर। क्या भारतीय कानूनो के हिसाब से कोई कम्पाउंडर अपने आप को डॉक्टर, नकली पुलिसवाला असली पुलिस का अधिकारी, नकली सरकारी अधिकारी असली सरकारी अधिकारी का पद, नाम या पदवी जो उसे कानूनी तौर से मिली है, का इस्तेमाल कर कोई विज्ञापन प्रकाशित करवा सकता है? आप कहेंगे कदापि नहीं, यह कानूनन जुर्म है और यदि कोई शिक्षक अपने आपको ‘प्रोफेसरÓ बताए, जबकि वह सिर्फ ट्यूटर है तो क्या यह कानूनन गलत नहीं है।
16 फरवरी 2015 को देश के सबसे प्रतिष्ठित कहे जाने वाले हिन्दी समाचार पत्र दैनिक भास्कर के पेज नं. 5 पर इंदौर स्थित कोचिंग संस्थान कैटेलाइजर जिसकी इंदौर में 3 व भोपाल में भी 3 ब्रांच हैं, इसने एक फुल पेज विज्ञापन प्रकाशित कराया, जिसमें 124 फैकल्टियों (टीचर्स) को अपने संस्थान में सेवारत दर्शाया गया। उक्त विज्ञापन में सभी फैकल्टियों के नाम व उनकी शैक्षणिक योग्यता को दर्शाया गया है और उन सभी फैकल्टियों के नाम के आगे ‘प्रोफेसरÓ शब्द का उल्लेख उन्हें महिमामंडित करने के लिए किया गया है, लेकिन हम आपको बता दें कि इन 124 फैकल्टियों में से तकरीबन 120 फैकल्टियां ‘प्रोफेसरÓ नहीं हैं और ना ही क्वालिफाइड टीचर्स हैं। कैटेलाइजर संस्थान ने जान-बूझकर एक अपराधिक साजिश रचते हुए न सिर्फ शहर वरन प्रदेशभर के छात्रों व उनके अभिभावकों को गुमराह करते हुए अपने यहां पढ़ाने वाले टीचर्स को ‘प्रोफेसरÓ बताया, जिससे छात्र व अभिभावक कानूनी रूप से मान्य संज्ञा विशेषण ‘प्रोफेसरÓ शब्द को पढ़कर प्रभावित हो जाएं और अपने बच्चों व छात्रों का इस कोचिंग संस्थान में प्रवेश करा दें, जबकि स्वयं कैटेलाइजर कोचिंग संस्थान के चारों डायरेक्टरों सुमित उपमन्यु, सुमित गर्ग, नितिन खंडेलवाल व विपिन जोशी सहित समस्त 120 फैकल्टियों को यह पता था कि हम ‘प्रोफेसरÓ नहीं हैं। हम तो मात्र ट्यूटर्स हैं या ज्यादा से ज्यादा स्कूली बच्चों को पढ़ाने वाले टीचर्स और यदि उन्हें ट्यूटर्स, टीचर्स, लेक्चरर व ‘प्रोफेसरÓ की विधि अनुसार शैक्षणिक योग्यता का ज्ञान नहीं है तो उन्हें कोचिंग पढ़ाने का कोई अधिकार नहीं है। भारत सरकार के 11 जुलाई 2009 व 18 सितम्बर 2010 के गजट नोटिफिकेशन के अनुसार विवि अनुदान आयोग (यूजीसी) एक्ट के तहत ‘प्रोफेसरÓ शब्द की योग्यता को कानूनी रूप से परिभाषित किया गया है। एक्ट के अनुसार ‘प्रोफेसरÓ शब्द कॉलेजों में छात्रों को पढ़ाने के लिए परिभाषित है। इस पद की शैक्षणिक योग्यता के अंतर्गत मास्टर्स डिग्री के साथ किसी संबंधित विषय में पीएचडी की डिग्री होना अनिवार्य है। इसके अलावा कम से कम 10 रिचर्स (शोधपत्र) का प्रकाशित वर्क होना जरूरी है। उपरोक्त शैक्षणिक योग्यता के साथ कम से कम 10 वर्षों तक किसी यूनिवर्सिटी या कॉलेज या रिसर्च यूनिवर्सिटी में छात्रों को पढ़ाने का अनुभव हो, पाठ्यक्रम, कोर्सेस व पढ़ाने की पद्धति की तकनीक पर शोध किया हो।

क्या कहता है कानून…?
भारतीय दंड विधान (भादंवि) की धारा 170 के तहत जो कोई किसी विशिष्ट पद को लोक सेवक के नाते धारण करने का अपदेश यह जानते हुए करेगा कि वह ऐसा पद धारण नहीं करता है या ऐसा पद धारण करने वाले किसी अन्य व्यक्ति का छद्म प्रतिरूपण करेगा और ऐसे बनावटी रूप में ऐसे पदाभास से कोई कार्य करेगा या करने का प्रयत्न करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी या जुर्माने से, या दोनों से दंडित किया जाएगा।
धारा 420 : छल करना और संपत्ति परिदत्त करने के लिए बेईमानी से उत्प्रेरित करना : जो कोई छल करेगा और तद् द्वारा उस व्यक्ति को, जिसे प्रवंचित किया गया है, बेईमानी से उत्प्रेरित करेगा कि वह कोई संपत्ति किसी व्यक्ति को परिदत्त कर दे, या किसी भी मूल्यवान प्रतिभूति को या किसी चीज को, जो हस्ताक्षरित या मुद्रांकित है और जो मूल्यवान प्रतिभूति में संपरिवर्तित किए जाने योग्य है, पूर्णत: या अंशत: रच दे, परिवर्तित कर दे या नष्ट कर दे, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दंडित किया जाएगा और जुर्माने से भी दंडनीय होगा।
भारतीय कानून की उपरोक्त धाराओं के अनुसार कैटेलाइजर कोचिंग संस्थान द्वारा प्रकाशित गलत, भ्रामक, छल से युक्त विज्ञापन छात्रों को बेईमानी से अपने कोचिंग संस्थान में भर्ती के लिए उत्प्रेरित करता है, जिससे कैटेलाइजर कोचिंग संस्थान को कोचिंग की फीस 80 हजार से 1 लाख रुपए परिदत्त कर दें। वहीं, दूसरी ओर फर्जी प्रोफेसरों को विज्ञापन में दर्शाकर प्रोफेसर शब्द की वैधानिकता केंद्रीय कानून के तहत स्थापित यूजीसी एक्ट 1956 के विरुद्ध है।

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