लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के कद्दावर, शिक्षित,साहसी और जागरूक मीडियाकर्मियों के संगठन ‘प्रेस क्लबों‘ के अध्यक्ष और कार्यकारणी क्यों है आज तक नपुंसक!?
री डिस्कवर इंडिया न्यूज़ इंदौर। इंदौर प्रेस क्लब के त्रैवार्षिक चुनाव की तारीख 8 मार्च 2020 घोषित हो गई है। लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के नाम से संबोधित समाचार जगत में काम करने वाले पत्रकार, फोटोग्राफर, डिज़ाइनर, ट्रांसलेटर, रिपोर्टर, सबएडिटर, एडिटर, सर्कुलेशन स्टॉफ, मार्केटिंग स्टाफ और अन्य मीडियाकर्मी जो प्रिंट मीडिया, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और वेब मीडिया में बहुतायत संख्या में कार्यरत है। आज भारत में इनकी दशा बद से बदतर है या यू कह सकते है कि इनकी हालात बंधुआ मजदूर जैसे हैं!
क्या इंदौर प्रेस क्लब के मैम्बर आगामी 8 मार्च 2020 को होने वाले चुनावों में कोई ऐसे कद्दावर अध्यक्ष और कार्यकारणी का चुनाव करेगी जो समस्त मीडियाकर्मियों के लिए –
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मजीठिया आयोग के द्वारा लागू किए गए वेतनमानों और जब से मजीठिया कानून लागू हुआ है तब से उनका बकाया एरिअर दिलवाने के लिए बड़े अख़बार मालिकों को मजबूर करना।
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मीडियाकर्मियों के स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए सभी अख़बार मालिकों को रात्रि में 11 बजे तक कार्यालय समय निर्धारित करने के नियम बनवाने के लिए मजबूर करना।
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रात पाली में काम करने वालों के लिए रात्रि भोजन कैंटीन सुविधा नो प्रॉफिट नो लॉस पर आधारित आवश्यक करवाना। (क्योंकि देर रात घर जाकर भोजन करना स्वास्थ्य की द्रष्टि से हानिकारक है।)
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संस्थान के सभी मीडियाकर्मियों का हर महीने डॉक्टर से चेकअप संस्थान से ही अनिवार्य करवाना।
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बिना नोटिस और बिना 90 दिन की सैलरी दिए बगैर कोई संस्थान किसी भी मीडियाकर्मी को अकारण नौकरी से नहीं निकाल सकता है।
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सभी संस्थानों से विकली ऑफ और 15 दिन की आकस्मिक और 15 दिन की सवैतनिक अवकाश को सुनिश्चित करवाना।
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हर बड़े संस्थान से प्रत्येक 2 साल में परिवार सहित घूमने जाने के लिए एलटीसी अलाउंस व 15 दिन की सवैतनिक अवकाश को सुनिश्चित करवाना।
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किसी भी मीडियाकर्मी को नौकरी में रखने से पहले उसे अपाइन्टमेंट लेटर, जिसमे सैलरी, भत्तो और सम्पूर्ण सेवा शर्तों के उल्लेख के साथ स्वामी, मुद्रक, प्रकाशक के द्वारा हस्ताक्षरित और सील के साथ देना अनिवार्य।
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शहर के सभी प्रिंट मीडिया, इलेक्ट्रॉनिक और वेब मीडिया के स्वामी, मुद्रक, प्रकाशक से लेकर चपरासी तक के कर्मचारियों को प्रेस क्लब की सदस्यता लेना अनिवार्य करवाना।
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बुज़ुर्ग और रिटायर हो चुके प्रेस के कर्मचारियों को 2 लाख रुपए की सम्मान निधि सहायता को सुनिश्चित करना।
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लड़की की शादी के लिए 1 लाख रुपए की आर्थिक सहायता सभी सदस्यों को पत्रिका मिलते ही उसके घर भिजवाना।
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मीडियाकर्मी के प्रतिभवान बच्चों को कोचिंग फ्री करवाने की पहल करना।
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सरकार, नगर निगम और आईडीए के अलावा प्राइवेट बिल्डर और कॉलोनाइजर से मीडियाकर्मियों के लिए रियायती दर पर प्लाट या फ्लैट या मकान का कोटा सुनिश्चित करवाने के लिए पहल करना।
पुलिस प्रशासन और सरकार के साथ बैठकर यह सुनिश्चित करवाना या राज्य सरकार से कानून बनवाना की किसी भी पत्रकार या मीडियाकर्मी या स्वामी, मुद्रक और प्रकाशक के पदीय हैसियत में किए गए किसी भी कार्य के खिलाफ यदि कोई व्यक्ति या संस्थान कोई शिकायतकर्ता है तो उसके खिलाफ एफ़आईआर लिखने से पहले प्रेस क्लब की विधिक सलाहकार समिति से स्वीकृति अनिवार्य हो (विधिक सलाहकार समिति में रिटायर्ड जज और वरिष्ठ हाईकोर्ट वकील की नियुक्ति प्रेस क्लब और जिला कलेक्टर कार्यालय के एडीएम अधिकारी की सहमती से हो)।
इस तथाकथित लोकतंत्र के चौथे स्तंभ यानी मीडिया जो गांवों, तहसील, जिला और प्रादेशिक स्तर पर खासकर प्रिंट मीडिया, लोकल एवं प्रादेशिक इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के पत्रकारों व मीडियाकर्मियों की आज जो आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक हैसियत है वह लोकतंत्र के बाकी तीन स्तंभों के सामने दो कौड़ी की है? उसकी वजह है प्रेस क्लब का मजबूत व सशक्त न होना? क्या प्रेस क्लब सिर्फ इसलिए बनाए जाते है की मीडियाकर्मी वहां आकर इका_े होकर टिफिन खाए? शाम को टहलने आए? दाल-बाटी के आयोजन हो? भजन, भोजन और भंडारे हो? नेताओं और अधिकारियो के साथ क्रिकेट मैच के आयोजन हो? उनके साथ सेल्फी ले, फोटो खिचवाए? धार्मिक यात्राओ का आयोजन? गीत-संगीत की महफि़लों का आयोजन? बस?
आज के ज़माने में मीडियाकर्मी हो या पत्रकार हो या अखबार या चैनल से जुड़ा कोई भी कर्मचारी हो क्या वह लोकतंत्र के बाकी तीन स्तंभों के लोगों की तरह आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक, न्यायिक, कार्यस्थल पर व पारिवारिक रूप से सुरक्षित है?
पत्रकार विरादरी में हर तहसील एवं जिला स्तर पर प्रेस क्लबों का नाम बड़े सम्मान के साथ लिया जाता है, हर पत्रकार इन स्व-घोषित प्रेस क्लबों का मैम्बर होने के बाद अपने आपको सिद्ध पत्रकार मानकर पत्रकारों की जमात में शामिल होकर अपने आपको गौरान्वित महसूस करने लगता है!? लेकिन इन प्रेस क्लबों का गठन किस की भलाई के लिए किया जाता है? इनके गठन के पीछे मूल अवधारणा क्या है? क्या इन प्रेस क्लबों को भारत के संविधान या कानून या सरकार से कोई वैधानिक अधिकार प्राप्त है? यदि नहीं तो यह लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है ये बात कौन बोलता है? क्योंकि लोकतंत्र के बाकी तीन स्तंभ विधायिका, न्यायपालिका और सरकारी कार्यकारणी तो संवैधानिक, वैधानिक और देश के कानूनों के द्वारा अधिकृत है? किसी की औकात नहीं की इनके खिलाफ सीधे हाथ डाल दे? जब तक ये या इनके आका न चाहे? और देश के कानूनों में भी इनको बहुत से रच्छाकवच प्रदान कर रखे है? मोटी तनख्वाह के अलावा तमाम तरह की सुविधाएं जैसे बंगला, लक्सरी गाडियां, पेंसन, बच्चों की शिक्षा से लेकर बुढ़ापे तक की सुरक्षा का जिम्मा इस देश के संविधान और कानूनों से प्राप्त है?
पहले अपने अस्तित्व और स्वाभिमान से जीने और काम करने की पूर्ण स्वतंत्रता अपने मालिकों से मांग लो इसके अलावा संविधान और देश की सरकारों से अपने लिए कुछ न्यायिक अधिकार मांग लो तब इस देश के मसलो को उठाना? नहीं तो तुम्हारा नामोनिशां भी नहीं होगा लोकतंत्र में? चौथा स्तंभ कहलाने की तुम्हारी औकात नहीं है? गलतफहमी पाल कर बैठे हो तो अलग बात है? ञ्च प्रदीप मिश्रा न्यूज़ एडिटर री डिस्कवर इण्डिया न्यूज़ इंदौर