इंदौर महापौर की सीट ओबीसी महिला के लिए आरक्षित
शहरी अराजकता, बढ़ता ट्रैफिक, बिजली की कटौती, पानी की कमी, लोगों को सुरक्षित और आरामदायक सार्वजनिक आवागमन, महंगे आवास और खस्ताहाल स्कूल, हर कोई ऐसी जादुई शख्सियत की तलाश में है, जो शहरी जीवन को बेहतर बना सकें। एक ऐसा शहर जो काम करता हो, जहां सड़कों पर पैदल चलने की जगह हो, पार्क हो, यातायात सुलझा हुआ हो, सड़कें और इमारतें योजनाबद्ध तरीके से बनी हों, शहरी और सार्वजनिक यातायात सुलभ हो, बिजली, पानी, इंटरनेट जैसा आम सुविधाओं की अबाध्य आपूर्ति हो। स्मार्ट शहरों का प्रशासन चलाने वाले लोगों का भी स्मार्ट होना जरूरी है। आज इंदौर शहर में बढ़ते अपराध, वारदातें, ट्रैफिक जाम में फंसे लोगों की चीत्कारें, सड़क पर पसरे, जुगाली करते कभी भी बिदक जाने वाले सांड, आवारा कुत्ते, हर तरफ पसरा कचरा, मुख्य मार्गों पर अव्यवस्थित ठेले, गुमटियां व खोमचे, साप्ताहिक बाजार, हर पल महंगी होती जाती वर्गफीट की जमीन, अतिक्रमण और बिना किसी योजना के उग आई बस्तियां, पान खाकर थूकते लोग और मौसम बदलते ही स्वाइन फ्लू या डेंगू जैसी बीमारियां, अपंग प्रशासन और भ्रष्ट नौकरशाही व भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे निगम से लडऩे के लिए आरक्षण से समर्थ नेतृत्व या महापौर इस शहर को मिल पाएगा?
इंदौर। एक तरफ प्रधानमंत्री मोदी सारी दुनिया के उद्योगपतियों को भारत में निवेश के लिए आमंत्रित कर रहे हैं। लोगों से आग्रह कर रहे हैं आओ और भारत में उद्योग लगाओ हम आपको सर्वसुविधायुक्त विश्वस्तरीय शहर देंगे, तकनीक से उन्नत डिजिटल इंडिया बनाएंगे। उसी की उपज है स्मार्ट शहरों की परिकल्पना, वहीं दूसरी ओर वो स्वच्छ भारत अभियान की बात कर रहे हैं। स्वच्छ भारत बनाने की जिम्मेदारी देश को ग्राम पंचायतों, नगर पंचायतों, नगर पालिकाओं और नगर निगमों की है और इसका दारोमदार है चुने गए सरपंच, पंच, नगर पालिकाओं के अध्यक्षों एवं बड़े नगरों के महापौर व पार्षदों पर। इसके अलावा ग्राम, तहसील व शहरों के सरकारी प्रशासनिक अधिकारियों को ईमानदार व भ्रष्टाचारयुक्त दायित्व निभाने के संस्कारों (जो कभी डले ही नहीं) पर, लेकिन हमारी संवैधानिक व्यवस्थाएं नीतियां व कानून आज भी ऐसे हैं जो समय के साथ कदमताल निभाने में असक्षम हैं? किसी व्यक्ति, घर, छात्र व जाति विशेष के उत्थान व विकास के लिए आरक्षण समझ में आता है, लेकिन किसी गांव, तहसील व शहर के विकास के लिए बनाई गई सम्पूर्ण संवैधानिक व्यवस्था के सर्वोच्च पदाधिकारी, महापौर और पार्षदों की नियुक्ति की योग्यता का पैमाना जाति विशेष व लिंग विशेष (महिला-पुरुष) के लिए आरक्षित करना व वार्डों को भी (एससी/एसटी/ओबीसी) जाति विशेष से वर्गीकृत करना, क्या प्रधानमंत्री मोदी के डिजिटल इंडिया व स्मार्ट सिटी बनाने की कल्पना को सार्थक रूप दे पाएगी। यह मंथन योग्य व विचारणीय प्रश्न है।
मध्यप्रदेश में नवंबर में होने वाले नगरीय निकाय चुनाव के मद्देनजर महापौर, नगर पालिका अध्यक्ष और नगर पंचायत अध्यक्ष पद के लिए आरक्षण की प्रक्रिया गत दिनों पूरी हुई। इंदौर नगर निगम का महापौर पद इस बार किस वर्ग के लिए आरक्षित होगा ये फैसला गत दिनों भोपाल में लॉटरी सिस्टम से तय हुआ। नगरीय प्रशासन विभाग गत दिनों को भोपाल में लॉटरी सिस्टम के जरिए इस पद के लिए आरक्षण किया गया। आरक्षण कार्यक्रम रवींद्र भवन में हुआ। इस बार भी आरक्षण के लिए लॉटरी प्रक्रिया ही अपनाई गई। आरक्षण प्रक्रिया के तहत भोपाल महापौर का पद जहां अनारक्षित रखा गया है, जबकि इंदौर महापौर की सीट ओबीसी महिला के लिए आरक्षित की गई है। इंदौर महापौर की सीट ओबीसी महिला को आरक्षित होने से दोनों ही दलों के उन नेताओं को करारा झटका लगा है, जिनकी नजर इस महत्पूर्ण पद पर थी। नवंबर में प्रदेश के 281 नगरीय निकायों में चुनाव होंगे। चुनाव आयोग चुनाव कार्यक्रम की घोषणा अब कभी भी कर सकता है। मध्यप्रदेश में नवंबर में होने वाले नगरीय निकाय चुनावों को ध्यान में रखते हुए महापौर, नगर पालिका अध्यक्ष और नगर पंचायत अध्यक्ष पद के लिए राजधानी स्थित रवीन्द्र भवन में विभिन्न सीटों पर आरक्षण का फैसला लिया गया। आयुक्त नगरीय प्रशासन संजय शुक्ला द्वारा महापौर आरक्षण की प्रक्रिया शुरू की गई। उन्होंने पहले आरक्षण के नियमों के बारे में जानकारी दी और सबसे पहले अनुसूचित जाति का आरक्षण किया गया। इसके बाद अन्य महापौर सीटों का आरक्षण हुआ। इंदौर में इस बार चौंकाने वाली लॉटरी खुली। 15 साल से यहां सामान्य वर्ग के लिए मेयर की कुर्सी आरक्षित थी। पहली बार पिछड़ा वर्ग की महिला मेयर का पद आरक्षित हुआ है।
नगर पालिका अध्यक्ष पद के लिए भी हुआ आरक्षण
प्रदेश की 98 नगर पालिका अध्यक्ष पद का भी आरक्षण किया गया। सामान्य के लिए 52, ओबीसी की 25, एससी के 15 और एसटी के 6 अध्यक्ष पद आरक्षित किए गए।
अब कभी भी हो सकती है घोषणा
राज्य निर्वाचन आयोग इन चुनावों के लिए कभी भी कार्यक्रम घोषित कर सकता है। फिलहाल राज्य के 14 नगर निगमों में से 12 पर भाजपा और एक-एक सीट पर कांग्रेस व बसपा का कब्जा है। प्रदेश के सबसे बड़े शहर इंदौर का महापौर पद पिछड़ा वर्ग की महिला के लिए आरक्षित होते ही अब सवाल यह है कि भाजपा से कौन महापौर पद का उम्मीदवार होगा? आरक्षण की घोषणा होने के साथ ही दोनों दलों में दावेदारों की लाइन लग गई है। सत्ता पर तीसरी बार काबिज हुई भाजपा के लिए इंदौर का महापौर पद फिर हासिल करना प्रतिष्ठा का प्रश्न है। यहां पिछले तीन चुनाव से निगम पर भाजपा का कब्जा है। जो मैदानी हालात विधानसभा व लोकसभा चुनाव के बाद बने हैं, उसमें यहां इस बार भी नगर सरकार की दौड़ में कांग्रेस के मुकाबले भाजपा की राह ज्यादा आसान दिख रही है, लेकिन ओबीसी महिला कैटेगरी में पार्टी के पास कोई वजनदार महिला नेता का न होना एक नकारात्मक पक्ष भी है। इसी ने पार्टी की चिंता को गहरा दिया है। हरियाणा में भाजपा की जीत में अहम भूमिका निभाने वाले विजयवर्गीय पिछले दो निगम चुनावों में एन वक्त पर पासा फेंककर अपनी पसंद के नाम पर नेतृत्व की मुहर लगवाने में सफल हो चुके हैं। विजयवर्गीय इस बार भी अपनी पसंद के ही किसी नेता को महापौर पद के उम्मीदवार के रूप में देखना चाहेंगे। ताई इस चुनाव में लोकसभाध्यक्ष की अपनी हैसियत का फायदा उठाने में कोई कसर बाकी नहीं रखेंगी।
भाजपा : अभी तो इन पर हैं सबकी निगाहें
मालिनी गौड़
(विधायक इंदौर 4)
दो बार की विधायक हैं और महापौर पद ओबीसी महिला के लिए आरक्षित होते ही भाजपा की ओर से सबसे पहले इन्हीं का नाम आगे आया। साफ-सुथरी छवि के कारण मुख्यमंत्री व संगठन की पसंद भी ये हो सकती हैं। विरोधियों के पास इनके खिलाफ ज्यादा कुछ कहने को भी नहीं है। खुद ने भी कहा कि यदि पार्टी चुनाव लड़वाएगी तो मैं तैयार हूं। चुनाव लडऩे की स्थिति में विधायक पद छोडऩा पड़ेगा।
क्या इनमें महापौर बनने की काबिलियत है?
या ये किसी राजनीतिक संगठन या पति की राजनीतिक विरासत की मात्र कठपुतली होंगी? या शहर से किसी गैर राजनीतिक कुशल महिला नेतृत्व को चुना जाएगा?
इनके भी नाम पहले ही दिन चर्चा में आए
पार्षद शीलाताई घुमनर, पूर्व पार्षद मालती डागोर, निर्मला हार्डिया, सुमनलता यादव, पूजा पाटीदार, राजकुमारी कुशवाह, रोशनी वर्मा (पूर्व पार्षद बलराम वर्मा की पत्नी) के साथ ही सभापति राजेंद्र राठौर, जलकार्य समिति के अध्यक्ष मुन्नालाल यादव की पत्नी शामिल हैं।
कांग्रेस : इन्हें भी मिल सकता है मौका
- अर्चना जायसवाल
इंदौर विकास प्राधिकरण की संचालक व महिला कांग्रेस की प्रदेशाध्यक्ष रह चुकी हैं। अभी भी सक्रिय हैं। प्रदेश के साथ ही केंद्रीय नेताओं से भी अच्छे संबंध हैं। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरुण यादव की पसंद हो सकती हैं और पार्टी के बड़े नेता भी मदद कर सकते हैं। हालांकि महिला कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष शोभा ओझा इनका रास्ता रोकने में कोई कसर बाकि नहीं रखेंगी। दोनों एक दूसरे की धुर विरोधी हैं। पार्टी के कुछ स्थानीय नेता भी उनका विरोध करेंगे।
- शशि यादव
शहर महिला कांग्रेस की अध्यक्ष। इनका नाम भी अर्चना जायसवाल को रोकने के लिए आगे लाया जा सकता है पर व्यापक पहचान का अभाव और संगठन का भी ज्यादा अनुभव नहीं।
- फौजिया शेख अलीम
दूसरी बार की कांग्रेस पार्षद पर खुद का कोई आधार नहीं। दिग्विजयसिंह के साथ ही कुछ बड़े अल्पसंख्यक नेताओं से मदद के आसरे पति शेख अलीम ने आगे बढ़ाई दावेदारी। पति अलीम का अल्पसंख्यक समुदाय में अच्छा प्रभाव। पार्षदों का एक बड़ा समूह इनका नाम आगे बढ़ा सकता है।
- मनीषा गौर
महिला कांग्रेस की पूर्व शहर अध्यक्ष। इन दिनों अभ्यास मंडल के माध्यम से सामाजिक व शहरहित के कामों में बेहद सक्रिय। सार्वजनिक मंचों पर प्रभावकारी उपस्थिति रहती है। गैर राजनीतिक लोगों का भी समर्थन मिल सकता है। महिला कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष शोभा ओझा भी इनकी उम्मीदवारी के पक्ष में रहेंगी, क्योंकि उनके प्रदेशाध्यक्ष रहते ही ये शहर अध्यक्ष थीं।
- विनीतिका यादव
अभी पार्षद हैं। पूर्व विधायक रामलाल यादव की बहू और इंदौर एक से विधानसभा चुनाव हारे दीपू यादव की पत्नी। क्षेत्र विशेष में ही प्रभाव और प्रदेशाध्यक्ष अरुण यादव से ससुर की नजदीकी के कारण दौड़ में रहेंगी। भंवर जितेंद्रसिंह से पारिवारिक नजदीकी के चलते दिल्ली से भी मदद मिल सकती है।
- रेणुका पटवारी
विधायक जीतू पटवारी की पत्नी। राजनीति में नितांत अपरिचित चेहरा पर पति का आधार मजबूत। पारिवारिक पृष्ठभूमि भी राजनीतिक। अर्चना जायसवाल को रोकने के लिए स्थानीय नेता भी इनका समर्थन कर सकते हैं। इन्हें भी दिग्विजयसिंह से मदद की उम्मीद।
निगम का खजाना पूरी तरह खाली होने की कगार पर
इंदौर। 2200 करोड़ का बजट घोषित करने वाले इंदौर नगर निगम के खजाने में फिलहाल 1 फीसदी राशि बची है। इसमें कर्मचारियों को अक्टूबर की तनख्वाह बांटने के बाद निगम का खजाना पूरी तरह खाली हो जाएगा। ऐसे में 15 नवंबर के बाद निगम के कामकाज के संचालन में दिक्कत आ सकती है। निगम की आर्थिक स्थिति के डांवाडोल होने के पीछे सबसे बड़ा कारण वसूली नहीं हो पाना है। निगम की राजस्व वसूली बीते माह में कमजोर रही है। निगम की वसूली कार्रवाई सुस्त रही है। निगम भले ही दावा कर रहा है कि हजारों खातों में बकाया राशि खत्म कर दी गई है, लेकिन उससे उतना पैसा निगम को प्राप्त नहीं हो पाया, जितना होना चाहिए था। वहीं जिन संपत्ति कर खातों में बीते दिनों में निगम ने कार्रवाई करते हुए चोरी पकड़ी थी, उनमें से गिनती के खातों से पैसा मिला है।