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जमीनी स्तर पर व्यापक बदलाव का अभी भी इंतजार
नई दिल्ली। सरकार भले ही तर्क दे रही है कि कुछ नीतिगत पहल के चलते कारोबारी माहौल में सुधार हुआ है, लेकिन जमीनी स्तर पर व्यापक पुनरुद्धार का अभी भी इंतजार है अगर औद्योगिक नीति एवं संवर्धन विभाग (डीआईपीपी) के आंकड़ों को देखें तो निवेश में सुधार के सरकारी दावे को बहुत कम समर्थन मिलता है। चालू वित्त वर्ष (जनवरी से अगस्त) में महज 37,915 करोड़ रुपए की परियोजना पर काम हुआ, जबकि पिछले साल इसी अवधि के दौरान 64,276 करोड़ रु. की परियोजनाओं पर काम हुआ था। यह 2012 के 82,156 करोड़ रु. के अधिकतम स्तर का छोटा हिस्सा है। इसके समान ही ङ्क्षचता की बात यह है कि उद्योग की ओर से प्रस्तावित निवेशों की मात्रा भी घटी है। चालू वित्त वर्ष (जनवरी-अक्टूबर) में आईईएम के माध्यम से निवेश प्रस्ताव गिरकर 22,36,423 करोड़ रु. रह गया, जो इसके पहले के साल की समान अवधि में 3,32,441 करोड़ रु.था। इसमें मोटे तौर पर एक लाख करोड़ रु. की गिरावट आई है। केयर के अनुमान के मुताबिक चालू वित्त वर्ष मेंं अप्रैल से अगस्त के दौरान प्रस्तावित निवेश 1.48 लाख करोड़ रु. के निम्न स्तर पर रहा, जबकि पहले के वित्त वर्ष में यह 2.34 लाख करोड़ रु. था। मांग कमजोर बनी हुई है। ऐसे में निवेश में सुधार, अनुमान की तुलना में कहीं कठिन साबित हो रहा है। विश्लेषकों का कहना है कि निवेश में कोई तात्कालिक बदलाव नहीं होने वाला है, क्योंकि कुछ कारणों से निवेश रुका हुआ है। हालांकि सड़क, रेलवे और बिजली पारेषण में सरकार का निवेश बढ़ा है। वरिष्ठ अर्थशास्त्री अदिति नायर कहती हैं कि बुनियादी ढांचा क्षेत्र मेंं सुधार, कुछ चुङ्क्षनदा सेक्टर जैसे सड़क, रेलवे और बिजली पारेषण तक सीमित है।

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इंडिया रेटिंग एंड रिसर्च में मुख्य अर्थशास्त्री देवेंद्र पंत कहते हैं कि निजी क्षेत्र की स्थिति देखें तो ओवर लिवर्रेड फर्में नए निवेश शुरू करने से खुद को रोके हुए हैं। बैंक भी कर्ज देने के मामले में सुस्ती दिखा रहे हैं और वे अपनी खस्ताहाल बैलेंस शीट ठीक करने में लगे हैं। इस तरह से हाल-फिलहाल में निजी क्षेत्र से पुनरुद्धार की संभावनाएं कम हैं। उम्मीद की जा रही थी कि सार्वजनिक क्षेत्र में निवेश से निजी क्षेत्र भी आगे बढ़ेगा, लेकिन यह अभी मूर्त रूप लेता नहीं दिख रहा है।
यह ङ्क्षचता भी उठ रही है कि आने वाले साल में सरकार के लिए निवेश चक्र बहाल कर पाना और कठिन साबित होगा। नायर कहती हैं किसातवें वेतन आयोग की सिफारिशें लागू होने के बाद आने वाले वर्षों में बजट से पूंजीगत व्यय की संभावनाएं और सीमित हो जाएंगी। इसके अलावा एक रैंक एक पेंशन का बोझ भी खजाने पर पड़ेगा और वित्तीय क्षमता मेंं और कमी आएगी। ऐसे में बजट के अलावा समर्थन जैसे राष्ट्रीय निवेश और बुनियादी ढांचा कोश महत्वपूर्ण होगा, जिससे निवेश गतिविधियां जोर पकड़ सकती हैं, लेकिन संदेह है कि इन स्रोतों से तेजी से गति दी जा सकेगी, जो सरकारी खर्च में आने वाली कमी की जगह ले सकेंगे। वहींं दूसरी ओर परिवारोंं की ओर से मांग की स्थिति भी बिगड़ी है। भारतीय रिजर्व बैंक के सर्वे से पता चलता है कि क्षमता के इस्तेमाल की दर करीब 75 प्रतिशत पर बनी हुई है।
कम मांग और कर्ज के बोझ से दबी कंपनियां नए निवेश से दूर भाग रही हैं, क्योंकि अगर तत्काल कोई मांग बढ़ती भी है तो उसे आसानी से मौजूदा क्षमता से पूरा किया जा सकता है। ऐसे में उद्योग जगत ‘देखो और इंतजार करोÓ की नीति अपना रहा है। अर्थशास्त्रियों का कहना है कि परिवारों की मांग में तीन स्रोतों से निकट भविष्य में गति मिल सकती है। पहला, महंगाई दर में तेज गिरावट अगर बनी रहती है तो इससे परिवार की आय बढ़ेगी और अन्य चीजों पर निवेश की क्षमता बढ़ेगी। दूसरे, कम ब्याज दर का दौर शुरू होगा, जिससे उपभोक्ता वस्तुओं और रियल एस्टेट जैसे क्षेत्रों में निवेश बढ़ेगा, जो ब्याज के प्रति संवेदनशील हैं। 7वें वेतन आयोग को लागू कर परिवारों की आय बढ़ाई जाए, इससे भी खपत में तेजी आ सकती है। हालांकि इन स्रोतों से भी परिवारों की खपत में तेजी लाने का असर सीमित है। पहले दो स्रोत तो पहले से ही लागू हैं, जिनका मध्यावधि असर पड़ सकता है। अब सिर्फ वेतन आयोग से उम्मीद बची है, अगर इसे समयबद्ध तरीके से लागू किया जाए तो इसका विभिन्न उपभोक्ता वस्तुओं जैसे छोटी कारों, दोपहिया वाहनों आदि की बिक्री पर अच्छा असर रहेगा।

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