साक्षात्कार: भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर का मत
भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन ने कहा है कि चीन की आॢथक सुस्ती से उपजा दर्द भारत का भी दर्द है। उनका यह कथन सरकार के दावे के बिल्कुल उलट है। सरकार कहती रही है कि चीन की अर्थव्यवस्था में आई सुस्ती का असर भारत पर नहीं पड़ेगा।
राजन ने एक अन्य पत्र को साक्षात्कार में कहा कि चीनी अर्थव्यवस्था में छाई सुस्ती पूरी दुनिया के लिए ङ्क्षचता की बात है। चीन को होने वाले हमारे निर्यात में कुछ की मांग कम हुई है। लेकिन अप्रत्यक्ष तौर पर भी कई देश हैं, जो चीन को उतना निर्यात नहीं कर पा रहे हैं, जितना वे करते रहे हैं और इसलिए वह हमसे भी खरीदारी कम कर रहे हैं। कुल मिलाकर चीन की आॢथक सुस्ती से हम पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। क्यों कि चीन की सुस्ती का असर वैश्विक आॢथक वृद्धि पर पड़ा है और भारत वैश्विक अर्थव्यवस्था से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। वही दूसरी ओर वित्त मंत्री अरुण जेटली ने पिछले महीने कोलंबिया विश्वविद्यालय में जुटे छात्रों से कहा था कि भारत पर मंदी का कोई असर नहीं पड़ा है। भारत, चीन की आपूॢत शृंखला का हिस्सा नहीं है। राजन पिछले दिनों हांगकांग में थे, जहां उन्हें हांगकांग विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्ववविद्यालय ने डॉक्टरेट की मानद उपाधि से सम्मानित किया।
अपने साक्षात्कार में राजन ने भारत और चीन के बीच बढ़ती आपसी निर्भरता का भी जिक्र किया। राजन ने कहा कि प्रधानमंत्री ने पड़ोसियों के साथ संबंध सुधारने के लिए स्पष्ट मार्ग प्रशस्त किया है। पारंपरिक तौर पर पश्चिम पर ध्यान देने की बजाय अब पूर्व की ओर ज्यादा ध्यान है। चाहे एशियाई अवसंरचना निवेश बैंक हो या फिर चीन की रेशम मार्ग पहल हो। हमारी चीन और चीनी परियोजनाओं के साथ अधिक संलिप्तता होगी। इससे क्षेत्र में जुडऩे और विस्तार करने में चीन का भी हित होगा।
चीन ने ग्रामीण क्षेत्र में उद्यम को प्रोत्साहन दिया
राजन ने उम्मीद जताई कि भारत आॢथक मार्ग के बारे में चीन से सबक लेगा। हमें चीन की विनिर्माण क्षेत्र की सफलता से सीखना चाहिए कि चीन ने किस प्रकार अपना ढांचागत विकास किया। किस प्रकार चीन ने ग्रामीण क्षेत्र में उद्यम को प्रोत्साहन दिया और किस प्रकार चीन ने इतनी बड़ी मात्रा में एफडीआई को व्यवस्थित किया। कई भारतीय व्यवसायी जो चीन जाते-रहते हैं। वे बेहतर अनुभव के साथ लौटते हैं और बताते हैं कि किस प्रकार चीन में भारत से बेहतर काम होता है। आरबीआई गवर्नर ने हालांकि यह भी कहा कि हमें आंख बंद कर चीन द्वारा अपनाए गए रास्ते पर नहीं चलना चाहिए, क्यों कि उसने भी कुछ शर्तों में बदलाव किया है। हमें यह देखना होगा कि किस रास्ते पर हमें चलना है, ताकि दोनों के लिए यह बेहतर हो। उदाहरण के तौर पर क्या यह ठीक रहेगा कि जिन क्षेत्रों में पहले ही चीन की विशेषज्ञता है, भारत को भी उन्हीं क्षेत्रों में बढऩा चाहिए? कुछ मामलों में दोनों के लिए गुंजाइश है, लेकिन कुछ में यह नहीं हो सकती है।