सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज एसएन शुक्ला के खिलाफ सीबीआई को मुकदमा दर्ज करने की अनुमति दे दी है. जज एसएन शुक्ला पर एमबीबीएस कोर्स में दाखिले के लिए एक निजी मेडिकल कॉलेज को कथित रूप से फायदा पहुंचाने का आरोप है. इस मामले में सीबीआई निदेशक ने चीफ जस्टिस रंजन गोगोई को चिट्ठी लिख जस्टिस एसएन शुक्ला पर लगे आरोपों की जांच करने की इजाजत मांगी थी. माना जा रहा है कि भ्रष्टाचार निरोधी अधिनियम के तहत उनकी गिरफ्तारी हो सकती है।
एसएन शुक्ला पर आरोप है कि उन्होंने एक प्राइवेट मेडिकल कॉलेज में नामांकन की तारीख बढ़ा कर कॉलेज की मदद की. पिछले महीने सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिज रंजन गोगोई ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक चिट्ठी लिखी थी. इसमें सीजेआई रंजन गोगोई ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज एस एन शुक्ला को पद से हटाने के लिए संसद में प्रस्ताव लाने को कहा था. पिछले साल जस्टिस दीपक मिश्रा भी प्रधानमंत्री को जस्टिस शुक्ला को हटाने के बारे में कह चुके हैं.
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस पी के जायसवाल भी थे आरोपों की जाँच वाली कमेटी में
सीबीआई ने प्रसाद इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस में मेडिकल एडमिशन घोटाले को लेकर उड़ीसा हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज आईएम कुद्दूसी, प्रसाद एजुकेशनल ट्रस्ट के मालिक बीपी यादव, पलाश यादव व बिचौलिए विश्वनाथ अग्रवाल, भावना पांडेय समेत मेरठ के एक मेडिकल कॉलेज के सुधीर गिरी और अन्य अज्ञात सरकारी व निजी संस्थान से जुड़े लोगों पर केस दर्ज किया था. सुप्रीम कोर्ट के जरिये 46 मेडिकल कॉलेज पर अनियमिताओं के चलते अगले एक-दो साल तक छात्रों के प्रवेश पर रोक लगाई गई थी. इसमें प्रसाद इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल कॉलेज का नाम भी शामिल था
साल 2017 में उत्तर प्रदेश सरकार के एडवोकेट जनरल राघवेंद्र सिंह ने जस्टिस शुक्ला के आदेश पर आपत्ति जताते हुए सुप्रीम कोर्ट से गुहार लगाई थी. तब सीजेआई दीपक मिश्रा ने मद्रास हाई कोर्ट की चीफ जस्टिस इंदिरा बनर्जी, सिक्किम हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस एस के अग्निहोत्री और मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस पी के जायसवाल की इनहाउस कमेटी से इन आरोपों की जांच कराई थी.
कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में साफ कहा था कि जस्टिस शुक्ला के खिलाफ साफ और पर्याप्त सबूत हैं, इसलिए उन्हें अविलंब हटाया जाय. डेढ़ साल पहले सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर बने इनहाउस पैनल ने जस्टिस शुक्ला को बदनीयती से अपने अधिकारों के दुरुपयोग का दोषी मानते हुए इनको पद से हटाए जाने की सिफारिश की थी. जस्टिस शुक्ला ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अनदेखी कर एक निजी मेडिकल कॉलेज को दाखिले की समयसीमा बढ़ाने की छूट दी थी.