एजेंसी ,नई दिल्ली। भारत का लोकतंत्र अगर वाकई में कई भला चाहने वाले लोगों के तजुर्बे का फायदा उठाना चाहता है, तो इसे एक नागरिक संस्कृति और कानूनबद्ध माहौल की जरूरत है। मुझे इस बात की राहत है कि मेरे लिए जिस तरह के अपशब्दों का इस्तेमाल किया गया, उनको सुनने के लिए मेरे माता-पिता जिंदा नहीं हैं। मैं चुनावी राजनीति में सत्ता या शक्ति के लिए नहीं, बल्कि एक ऐसे शहर की सेवा के लिए आई जो 40 सालों से मेरा घर है। मैंने एशियाई खेलों में हजारों छात्रों के साथ यातायात की व्यवस्था देखी। वो भी तब, जब मेरे कुछ सीनियर लोग मुझे बाहर का रास्ता दिखाने के लिए एक कोर्स करने के लिए जापान भेजना चाहते थे। उनमें से कुछ के लिए ट्रैफिक-व्यवस्था कमाई का जरिया थी।
समय आ गया, हर जनसेवक शासन में भागीदार बने
किरण बेदी ने कहा धार्मिक सभाओं द्वारा लोगों को ‘अपील’ की अनुमति नहीं दी जाना चाहिए और इसे कानून का उल्लंघन मान प्रतिबंध लगाना चाहिए। अब समय आ गया है कि हर जनसेवक देश के शासन में भागीदार बने। बिजली, पानी, नौकरी, यातायात, डॉक्टर हर चीज के लिए लोगों की आवश्यकताएं देश जो दे सकता है, उससे कहीं आगे निकल गई हैं। महिला-सुरक्षा के बारे में भूल जाओ। भगवान ही जानते हैं कि आखिर कब तक महिलाएं भुगतती रहेंगी। आखिर में, जिन लोगों ने मुझमें विश्वास व्यक्त किया, उन सबको धन्यवाद देना चाहूंगी और साथ ही उनको भी जिन्होंने मुझे हरसंभव अपशब्द से संबोधित किया। मुझे राहत होती है कि मेरे मां-बाप यह सब देखने के लिए जिंदा नहीं हैं।
मैं परीक्षा में फेल, मेरी अंतरात्मा नहीं…
किरण बेदी के मुताबिक, मैं चुनावी राजनीति में इसलिए आई कि मेरे पास जो कुछ भी था, वो मैं अपने शहर को देना चाहती थी। मैं यह भी चाहती थी कि मैं इस अपराधबोध के साथ ना मरूं कि मैं हमेशा सिर्फ टीका-टिप्पणी ही करती रही और कभी भी चुनावी राजनीति की परीक्षा देने की हिम्मत नहीं दिखा पाई। मैं परीक्षा में फेल हो गई और मैं अपने फैसले की पूरी जिम्मेदारी लेती हूं, लेकिन मेरी अंतरात्मा फेल नहीं हुई है.
शराब तस्करी का सफाया किया
उन्होंने कहा कि एक और बार जब एक जिले में शराब की तस्करी जोरों पर थी, तब मैंने शराब तस्करी का सफाया किया और प्रभावित लोगों का पुनर्वास किया, फिर कूड़ा-बीनने वाले बच्चों को स्कूल भेजा। पुलिस स्टेशनों से नशा-मुक्ति केंद्र खोले, जो पहले कभी सुना भी नहीं गया होगा। यह सब आजीवन अभियान बन गया था और आगे भी बना रहेगा। मैंने यह सब किसी बढ़ाई के लिए नहीं किया, बल्कि इसलिए किया कि सेवा और स्थितियां ऐसा करने की मांग करती थीं।
चुनौतियां अकेली नहीं आतीं
चुनावों के प्रश्न पर मैं कहना चाहूंगी कि हमें प्रचार अभियान की समीक्षा करने की आवश्यकता है। प्रचार में पूरा शहर या राज्य ठहर सा जाता है, क्या ये होना चाहिए? सड़कें अव्यवस्थित हो जाती हैं, काम-धाम रुक जाता है। सब कुछ शोर भरा हो जाता है और कई बार अशिष्ट, झूठा, पक्षपाती, भ्रष्ट, नाकारा, सारे कानून तोडऩे वाला और गलत संदेश देने वाला व्यक्ति सिरमौर हो जाता है।
लोग लागू करने वाली योजनाएं चाहते हैं
हमें इनका समाधान सोचना होगा, मुझे उम्मीद है कि मेरे जीवनकाल में ही मैं ये देखूंगी। लोग चाहते हैं कि जनसेवा दी जाए। लोग सत्यनिष्ठा, विश्वास और पेशेवर समर्पण चाहते हैं। लोग लागू करने लायक योजनाएं चाहते हैं, लेकिन लोगों को फोकट में भी चाहिए। जितना ज्यादा फोकट में देंगे, उतना ज्यादा पाएंगे। वो नहीं मानते कि जिंदगी में यूं ही कुछ नहीं मिलता है। अगर आप एक से छीनकर दूसरे को देंगे तो सबसे छिन जाने में ज्यादा वक्त नहीं लगेगा। साथ ही पूरा प्रचार-अभियान कानूनी, पारदर्शी, तथ्यपरक, साक्ष्य पर आधारित, सभ्य, संगठित और ज्यादा तकनीकी, निष्पक्ष और तटस्थ होना चाहिए।