@री डिसकवर इंडिया न्यू्ज इंदौर
ये कैसी आत्मघाती और नासमझ धर्म की आस्था है? जो दो बेटियों और परिवार को बेसहारा कर दे?
ऐसी धार्मिक मूर्खता पर दुःख और अफसोस किया जा सकता है पर इसका महिमामंडन बिल्कुल नहीं।
जब जैन धर्म किसी भी प्रकार की हिंसा को बर्दाश्त नहीं कर सकता है तो धर्म के नाम पर स्वयं के जीवन को कैसे खत्म करने की कोई परंपरा बना सकता है! आज कितनी पीड़ा हो रही होगी दिवंगत अमित चेलावत के परिवार और दो बेटियों के मन मस्तिष्क में जरा उसकी कल्पना करके देखो! इस तरह की धार्मिक कट्टरता एक प्रकार से हिंसा ही है क्योंकि इससे एक पूरा परिवार दुखी हैं!
स्थिति, काल, परिस्थिति के अनुसार धर्म की सही समझ न होने की वजह से, एक ना समझ जैन समाज के युवा ने कैसे बिना दवा और ईलाज के अपने जीवन को दाव पर लगा कर दो बेटियों और परिवार को बेसहारा छोड़कर असमय मौत के मुह मे चला गया?
जैन धर्म की जिस नवकारसी परंपरा के पालन को मानने का व्रत लेते हुए हार्ट अटैक आने के बाद भी तत्काल जीवन रक्षक दवा न लेने का आत्मघाती निर्णय इस ना समझ धार्मिक युवा ने लिया उसकी सच्चाई यह है कि उसे सही अर्थों में नवकारसी परंपरा के बारे में न तो पता था और न ही उसे समझाया गया था!
जैन धर्म में नवकारसी का मतलब सूर्योदय के 48 मिनिट बाद नाश्ता कर दिन की शुरूआत करना होता है! नवकारसी से पहले का समय प्रार्थना, ध्यान और आध्यत्मिक कार्यों के लिए होता है, बैडमिंटन या कोई अन्य खेल खेलने या भारी व्यायाम के लिए नहीं। नवकारसी स्वस्थ व्यक्तियों के लिए लागू होती है, बीमार या आकस्मिक रूप से चिकित्सा की आवश्यकता के समय नहीं लागू होती है। यह परंपरा अनुशासन और आत्मनियंत्रण के एक अभ्यास के रूप में स्वस्थ व्यक्ति द्वारा की जाती है। यह धर्म से ज्यादा एक शारीरिक अभ्यास है जिससे दिन की शुरुवात की जाती है।
मात्र 49 साल की उम्र! पिता पहले ही स्वर्गवासी हो चुके! दो छोटी बेटियों के पिता अमित चेलावत जिनकी एम वाय हॉस्पिटल रोड पर मनोहर केमिस्ट के नाम से मेडिकल की दुकान है, आज सुबह खेल प्रशाल मे अपने साथियों के साथ बैडमिंटन खेल रहे थे। काफी देर खेलने के बाद उनके सीने में दर्द हुआ और वे एक ओर जाकर बैठ गए और कुछ देर बाद वे अचेत अवस्था मे जाने लगे तो वहा मौजूद उनके दोस्तों ने उनके सीने में पंपिंग जिसे सी पी आर कहते हैं, की तो अमित उठ कर बैठ गए। उन्हें उनके दोस्तों ने तात्कालिक उपचार के रूप में सार्बिट्रेट टेबलेट (जो हार्ट अटैक आने पर तत्काल जान बचाने में कारगर टेबलेट है) देनी चाही तो अमित ने यह कहकर लेने से इंकार कर दिया कि वो अपनी जैन धर्म की एक परंपरा जिसे नवकारसी के नाम से जाना जाता है के अनुसार सुबह 8 बजे के पहले कुछ खा नहीं सकते हैं! दोस्तों ने फिर जबरन दो बार दवा की टेबलेट मुह मे डाली तो उन्होंने मुह से निकाल दी! और इसी दौरान उन्हें दिल का दूसरा दौरा पड़ा और वो धर्म के नाम पर असमय इस दुनिया से विदा हो गए!
@प्रदीप मिश्रा री डिसकवर इंडिया न्यू्ज इंदौर