@री डिस्कवर इंडिया न्यूज
हम भीड़ नहीं भेड़ है!! 140 करोड़ भेड़ों की भीड़ को नियंत्रित करने के लिए न तो कोई डिग्री या डिप्लोमा कोर्स है? न ही सरकारों के पास कोई अलग से विभाग और मंत्रालय है?
140 करोड़ की भीड़ के इस देश में न तो किसी यूनिवर्सिटी और न ही किसी कॉलेज में क्राउड और ट्रैफ़िक मेनजमेंट का कोई कोर्स पढ़ाया जाता है! और न ही कोई डिग्री कोर्स संचालित किया जाता है!
राज्यों और केंद्र सरकार के पास भीड़ और ट्रैफ़िक को नियंत्रित करने के लिए न तो अलग से कोई विभाग है और न ही कोई मंत्रालय और न ही मान्यता प्राप्त काबिल स्टाफ?
और न ही भीड़ को नियंत्रित करने के लिए कोई उच्च ट्रेनिंग प्राप्त कमांडो दस्ता?
क्योंकि हम भारत के लोग एक भेड़ों की भीड़ है। हमे भेड़ बनाया है हमारी धार्मिक मान्यताओ ने, तथाकथित साधु – संतों, महामंडलेश्वरों और हमारे राजनैतिक आकाओ ने। भेड़े अपने दुर्भाग्य के लिए किसी को दोष देने का हक या अधिकार नहीं रखती है।
भेड़ और भीड़ के चरित्र की एक विशेषता होती है कि उनमे दिमाग या बुद्धि नहीं होती है! हम भारत के लोग भेड़ है! हम कहीं भी जाते हैं तो भेड़ों की तरह एक भीड़ के रूप में जाते हैं! और हमारे हुक्मरानो ने हमारे लिए वयवस्था के नाम पर सब जगह कुओं का निर्माण कर रखा है!
और आप कुए में गिरने से तभी बच सकते हैं जब आप इंसान बनेंगे और यह तभी सम्भव है जब आप भेड़चाल से मुक्त होंगे?
एक पुरानी कहावत है यथा राजा तथा प्रजा, मतलब जैसा राजा होगा वैसी ही प्रजा होगी! यह कहावत राजे रजवाड़ों के युग से लेकर मुग़लों और अंग्रेजो के गुलामी के शाशन काल तक 100 फीसदी सही थी!
हज़ारों साल भारत की पूरी व्यवस्था इसी यथा राजा तथा प्रजा के अनुसार चलती रही!
फिर 1947 मे आधी रात को कुछ हुक्मरानो ने बताया कि अब प्रजा आज़ाद कर दी गई है! अब वह अपना राजा स्वयं चुन सकती है, और हर 5 साल मे चाहे तो बदल भी सकती हैं! लेकिन दुर्भाग्य से उस समय देश की 40 करोड़ जनसंख्या हज़ारों साल की गुलामी के बाद मिली आज़ादी की वजह से भेड़ों की भीड़ में तब्दील हो गई और 40 करोड़ भेड़ों का नेतृत्व कुछ ऐसे हुक्मरानो के हाथ आया जिन्होंने उन्हें सिर्फ रोटी, कपड़ा और मकान तक ही सीमित रखा?
और आज भेड़ों की जनसंख्या तकरीबन 100 करोड़ के आस पास हो गई है उन्हें हाकने वालों के चाल चरित्र और चेहरे वहीं पुराने वालों जैसे ही हैं बस उन्होंने एक काम किया है कि वो भेड़ों को यह समझाने मे सफल हो गए कि हमारा और तुम्हारा धर्म एक ही है!
भारत आदिकाल से ही एक धार्मिक देश रहा है। देश का 90 फीसदी टूरिज्म धर्म आधारित है, त्योहारों, मेलों, तिथियों, पर्वो, पवित्र नदियों मे स्नान आदि के दिन और महीने सनातन काल से सुनिश्चत है! उन विशेष तारीखों और महीनों मे करोड़ों की संख्या में देशवासी स्थान विशेष पर, नियत तिथि पर निश्चित तारीख और महीने में सनातन काल से पुण्य लाभ लेने के लिए उपस्थित होते आए हैं! तो भीड़ होना एक स्वाभाविक घटना है! और 12 वर्षो मे एक बार होने वाला कुम्भ मेला तो भीड़ का महासागर है क्योंकि इस मेले की पहचान और विशिष्टता ही भीड़ है, भीड़ ही इसका रूप और सौंदर्य है!
@प्रदीप मिश्रा री डिस्कवर इंडिया न्यूज इंदौर