हॉलमार्क भी नहीं है शुद्धता की गारंटी
निश्चित ही सोना समृद्धि-ऐश्वर्य का प्रतीक है, लेकिन भारत में सोना धर्म और संस्कारों का हिस्सा है। सदियों से हमारे देश में सोने के प्रति दीवानगी, प्यार में उपजी दीवानगी की हदों से ज्यादा है। दुनिया में भारत ही ऐसा देश है, जहां सोने की खरीदी किसी अर्थशास्त्र का हिस्सा नहीं है। सोने का जुड़ाव इस देश की संस्कृति से है। भारतीयों के लिए सोना लक्ष्मी का प्रतीक और आर्थिक संपन्नता के अलावा आर्थिक सुरक्षा की गारंटी माना जाता है। हमारे देश में गरीब से गरीब परिवार हो या अमीर से अमीर, सोना खरीदने की सोच सभी वर्गों की समान है। इसमें कोई फर्क नहीं है। अक्षय तृतीया और धनतेरस जैसे तीज-त्योहार तो सीधे सोना खरीदने के धार्मिक अनुष्ठान, रीति-रिवाज से जुड़े हैं। बात सिर्फ हिन्दुओं की ही नहीं है, हर धर्म व संप्रदाय के लोग सोने के मोहपाश में बंधे हैं। आज दुनिया का एक चौथाई सोना अकेले हमारे देश में लोग खरीदते हैं। हमारे यहां शादी-विवाह के गहने देने का रिवाज पारिवारिक संस्कारों व परम्पराओं में सदियों से है। शादी-ब्याह का सीजन शुरू होते ही सराफा व सोने की दुकानों में गहने खरीदने के लिए भीड़ उमड़ पड़ती है। प्रत्येक व्यक्ति चाहे आम हो या खास, सभी लोग सोना खरीदने को उत्सुक रहते हैं। लेकिन आम आदमी के साथ दिक्कत यह है कि उन्हें सोने की शुद्धता के बारे में जानकारी नहीं होती । उन्हें अपने ज्वेलर, दुकानदार या शोरूम के विश्वास पर निर्भर रहना पड़ता है। भारत में खासकर जहां विश्वास है, वहीं विश्वासघात भी है। सन् 2000 से पहले जिन लोगों व परिवारों ने सोना खरीदा है, वह मात्र विश्वास पर, क्योंकि उस समय सोने की शुद्धता को जांचने व परखने के लिए कोई सरकारी नियामक एजेंसी व मापदंड नहीं थे, यह पूर्ण रूप से ग्राहक व सुनार के साथ पारस्परिक विश्वास पर आधारित धंधा था। पुश्तैनी ज्वेलर्स या सुनार से ही अधिकांश परिवार सोना खरीदते थे, आभूषण बनवाते थे। पुराने आभूषण बेचकर नए आभूषण बनवाने का चलन सदियों से इस देश में सिर्फ व सिर्फ विश्वास पर आधारित है। शहर के एक नामी ज्वेलर्स के अनुसार तकरीबन 60 प्रतिशत से ज्यादा लोग विश्वास के इस धंधे में ठगे गए हैं और इसका सबसे बड़ा कारण है कि उन्हें सोने की शुद्धता के बारे में कोई खास तकनीकी जानकारी नहीं है। भारत की 80 प्रतिशत जनसंख्या गांवों में रहती है, जहां शैक्षणिक साक्षरता भी नहीं है, तो आप सोच सकते हैं कि सोना परखने की साक्षरता कैसे होगी? भारतीय बाजार में सोने का दाम 28000 रुपए प्रति 10 ग्राम के आसपास चल रहा है। महंगाई के इस दौर में अगर दुकानदार आपके साथ छल करें, तो क्या आप बर्दाश्त कर पाएंगे? हद तो तब हो रही है, जब सरकार की नियामक एजेंसी भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) द्वारा सोने की शुद्धता के लिए स्वर्ण आभूषण पर लगाए जाने वाले ‘हॉलमार्कÓ के केंद्रों में ही भ्रष्टाचार अपनी जड़ें जमाए बैठा है। पैसे लेकर गलत हॉलमार्क लगाए जा रहे हैं।
हॉलमार्क सेंटर भी नहीं हैं विश्वास के योग्य
सोने पर लगा हॉलमार्क सिर्फ शुद्धता की गारंटी नहीं, भरोसे का भी प्रतीक है, लेकिन हॉलमार्किंग सेंटर्स इस भरोसे को तोड़ रहे हैं। जो सोना आप खरीद रहे हैं, वह पूरा खरा ही है, इसकी कोई गारंटी नहीं है। हॉलमार्क लगा होने के बावजूद हॉलमार्किंग सेंटर्स 18 कैरेट सोने से बनी ज्वेलरी पर भी 22 कैरेट तक का हॉलमार्क लगा रहे हैं। इसका सीधा-सीधा नुकसान उपभोक्ताओं का ही है। शुद्धता की जवाबदेही हॉलमार्क सेंटर की होना चाहिए क्योकि गड़बडिय़ां वहीं हो रही हैं। कुछ सेंटर बिना जांचे हॉलमार्किंग कर रहे हैं।
बेच रहे हैं 18 कैरेट का सोना, कीमत वसूल रहे 24 कैरेट की
भारतीय बाजार में सोने का दाम २८००० रुपए प्रति 10 ग्राम के आसपास चल रहा है। असली सोने की पहचान करना आसान नहीं होता, खासतौर से आम आदमी के लिए। सोने की पहचान में पूरी तरह पारंगत होना तो आसान नहीं है, लेकिन कुछ सावधानियां बरतकर आप गलत चीज खरीदने से बच सकते हैं। आज हम आपको बताएंगे कि सोना खरीदते समय किन बातों का ध्यान रखें। आपका सोना कितना शुद्ध है। सोना खरीदते वक्त उसकी क्वॉलिटी पर जरूर गौर करें।
24 कैरेट सोने को सबसे शुद्ध माना जाता है, लेकिन इससे ज्वेलरी नहीं बनती। ज्वेलरी 22 कैरेट, 20 कैरेट या 18 कैरेट सोने से बनती है। इसलिए जब आप ज्वेलरी के लिए सोना खरीदें, तो तय कर लें कि आप कितने कैरेट का सोना खरीद रहे हैं और उसी का पैसा भी दें। होता यह है कि आप खरीदते हैं 22 कैरेट का सोना और पैसा देते हैं 24 कैरेट सोने का। इसका कारण है कि आप अखबारों में या टीवी पर सोने का रेट देखकर आते हैं, वह 24 कैरेट सोने का होता है, दुकानदार उसी हिसाब से पैसा लेता है।
अब यदि आपको ज्वेलर यह बताता है कि आपका आभूषण 22 कैरेट सोने का है, तो इसका मतलब आपके आभूषण में इस्तेमाल सोने की शुद्धता 91.66 फीसदी है। यदि आज का 24 कैरेट सोने का रेट 2८000 है और बाजार में 22 कैरेट सोने के आभूषण खरीदते हैं। तो शुद्ध सोने का दाम (2८000/24)x22=2५६६६ रुपए होगा। जबकि ज्वेलर आपको 22 कैरेट सोना भी 2८000 में ही देगा। यानी आप 22 कैरेट सोना 24 कैरेट सोने के दाम पर खरीद रहे हैं। ऐसे ही 18 कैरेट गोल्ड की कीमत भी तय होगी। (2८000/24) x 18=20९९९ रुपए होगा। जबकि ये ही सोना ऑफर के साथ देकर ज्वेलर आपको छलते हैं।
इस तरह गोल्ड ज्वेलरी 22 या 18 कैरेट के सोने से बनती हैं। यानी 22 कैरेट सोने के साथ 2 कैरेट और मेटल मिक्स किया जाता है। वहीं, 18 कैरेट सोने के साथ 6 अन्य मटैरियल मिक्स किया जाता है। ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टेंडर्ड (बीआईएएस) के गोल्ड सर्वे के मुताबिक 90 फीसदी गहनों में घोषित मात्रा से कम सोना मिलता है। औसतन यह मिलावट 10 फीसदी से ज्यादा होती हैं। कई मामलों में तो सोना घोषित मात्रा का आधा ही पाया जाता है। हॉलमार्क लाइसेंस लेने वाले कुछ ज्वेलर्स ही सही मायने में हालमार्किंग गहनों की बिक्री कर रहे हैं। वहीं, दूसरी ओर बाजार में 95 प्रतिशत से ज्यादा ज्वेलर्स के पास हॉलमार्क का लाइसेंस नहीं है, न ही लेने के लिए इच्छुक हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह उनके पास सोने की शुद्धता के निर्धारित मानक के अनुरूप शुद्धता के गहने उपलब्ध नहीं हैं। इसलिए हॉलमार्क के नियमों का पालन नहीं करते हैं। इससे ग्राहकों को दोहरा नुकसान होता है। एक तो उन्हें गहनों में सोने की पूरी शुद्धता नहीं मिलती, वहीं कीमत भी बिना हॉलमार्क गहनों के मुकाबले ज्यादा चुकाना पड़ती है। बहुत से निर्माता खुदरा व्यापारी छोटे कारखानों से काम करवाते हैं। सस्ते श्रमिक की अधिकता हैं, क्योंकि परम्परागत स्वर्णाभूषण ज्यादातर पूर्णतया हाथ से बनाए जाते हैं और इससे स्वर्ण के कैरेट की गुणवत्ता पर नियंत्रण प्राप्त करना मुश्किल होता है।
ग्राहक ज्यादातर आभूषण बनाने के लिए शुध्द सोने में मिलाई जाने वाली मेटल की गुणवत्ता का शिकार होता है। उदारण के लिए खरीदार को यह बताया जाता है कि उसने 22 कैरेट का सोना खरीदा है। जब वह इसे बेचने या गिरवी रखता है, तो उसे पता चलता है कि वास्तव में सोना 18 कैरेट का है। बहुत से ग्राहक इस तरह अपना धन नष्ट कर देते हैं। भारत में उच्च कैरेट के स्वर्ण आभूषण पर बल दिया जाता है और उच्च कैरेट के टांके के अभाव से भी समस्या उत्पन्न हो जाती है। परम्परागत हस्तशिल्प के 22 कैरेट के नमूनों में कई टांकों के जोड़ होते हैं और कम कैरेट के मिश्रधातु के टांके का अर्थ है गंभीर स्तर पर कैरेट का कम होना। अत: आप जब भी सोने के आभूषण खरीदने जाएं, तो खरे सोने का भाव + प्रति ग्राम लेबर चार्जेस का अलग-अलग भाव जरूर पूछें।
गोल्ड खरीदते वक्त ऐसे बचें धोखाधड़ी और ठगी से
ग्राहक को मेकिंग चार्ज में 100 पर्सेंट डिस्काउंट और दस ग्राम गोल्ड पर 3,000 रुपए का डिस्काउंट जैसे ऑफर्स पर भरोसा नहीं करना चाहिए, क्योंकि कोई भी ज्वेलरी शॉप अपने घर से पैसा लगाकर सस्ते दाम पर गोल्ड नहीं देगाी और अगर कोई देने का दावा कर रहा है, तो वह आपको ठग रहा है। अगर ज्वेलरी शॉप में बिकने वाली गोल्ड ज्वेलरी की शुद्धता अलग-अलग है, तो उसके भाव भी उसी हिसाब से ज्वेलर्स को लेना चाहिए, पर हकीकत में ऐसा नहीं हो रहा है। कई ज्वेलर्स अलग-अलग कैरेट गोल्ड की ज्वेलरी को भी 24 कैरेट सोने के भाव में बेचते हैं। ज्यादातर ग्राहकों को गोल्ड को परखना नहीं आता। ऐसे में उनके पास ज्वेलर्स पर भरोसा करने के सिवा कोई दूसरा रास्ता नहीं रहता है और यह इसलिए भी है, क्योंकि ज्यादातर लोग आज भी अपने पुश्तैनी सुनार से ही ज्वेलरी खरीदना पसंद करते हैं और विश्वास के तौर पर बस ग्राहक को ज्वेलरी तौलकर उसका वेट दिखाया जाता है और फिर उसी हिसाब से बिलिंग कर दी जाती है।
कैरेट है सोने की शुद्धता का पैमाना
कैरेट सोने की शुद्धता मापने की यूनिट है। जब आपको कोई सुनार, दुकानदार या शोरूम यह बताता है कि फलां आभूषण 24,22,18,14,9 …आदि कैरेट का खरा सोना है, तो आइए हम आपको बताते हैं, इसका मतलब क्या है।
सबसे पहले आप यह जान लें कि…
- 1 कैरेट का मतलब 1/24 प्रतिशत शुद्ध सोना।
- इस तरह 24 कैरेट का मतलब (24/२४) x१००=१००% सोना।
- २२ कैरेट का मतलब (22/२४) x१००=९१.६९% शुद्ध सोना।
- 18 कैरेट का मतलब (18/२४) x१००=७५% शुद्ध सोना।
- 1७ कैरेट का मतलब (17/२४) x१००=७०.८% शुद्ध सोना।
- 14 कैरेट का मतलब (14/२४)x१००= ५८.३% शुद्ध सोना।
- ९ कैरेट का मतलब (९/२४)x१००= ३७.५% शुद्ध सोना।
शुद्धता की गारंटी ‘हॉलमार्क क्या है?
स्वर्ण आभूषणों की हॉलमार्किंग को स्वैच्छिक आधार पर अप्रैल 2000 से आरंभ किया गया। इस स्कीम का संचालन पूरे देश में भारतीय मानक ब्यूरो के क्षेत्रीय और शाखा कार्यालयों के माध्यम से किया जा रहा है। इस स्कीम का उद्देश्य उपभोक्ताओं को स्वर्ण की शुद्धता और इसके सही होने के बारे में आश्वासन प्रदान करना है। इस योजना के अंतर्गत एक जौहरी को उसके आभूषण को हॉलमार्क प्राप्त करना होता है। इस प्रकार यह स्कीम जौहरियों को अपने आप मार्क करने का अधिकार प्रदान नहीं करती। हॉलमार्किंग केंद्र को भारतीय मानक ब्यूरो द्वारा यह सुनिश्चित करने के बाद मान्यता प्रदान की जाती है कि केंद्र के पास आधारभूत संरचना है, जो स्वर्ण और चांदी आभूषण वस्तुओं को एसेइंग और हॉलमार्किंग करने के साथ-साथ उसकी सुरक्षा और संरक्षा के लिए है।
वर्ष 2006 के दौरान भारत के चुनिंदा 16 शहरों में, जिसमें इंदौर भी शामिल है, उपभोक्ताओं को बेचे जा रहे सोने की शुद्धता को निर्धारित करने के लिए भारतीय मानक ब्यूरो द्वारा एक बाजार सर्वेक्षण किया गया। इस बाजार सर्वेक्षण का मुख्य उद्देश्य देश में स्वर्ण की शुद्धता के बारे में उपभोक्ताओं में जागरूकता उत्पन्न करने के लिए बाजार में बेचे जा रहे गैर हॉलमार्क स्वर्ण की शुद्धता की जांच करना था। सर्वेक्षण रिपोर्ट का विश्लेषण के बाद यह पाया गया कि लिए गए 162 नमूनों में से 16 नमूने जांच में सफल रहे और 146 नमूने असफल रहे। इस प्रकार 90.12 प्रतिशत नमूनों को दावा की गई शुद्धता पर खरा नहीं पाया गया।
इसके बाद यह महसूस किया गया कि स्वर्ण की शुद्धता की जांच के लिए देशव्यापी आधार-ढांचा का निर्माण करने और उपभोक्ताओं को घटिया गुणवत्ता वाले स्वर्ण की बिक्री से बचाने के लिए देश में स्वर्ण हॉलमार्किंग केंद्रों की स्थापना की अत्यंत आवश्यकता है। सोने के लिए बीआईएस 916 हॉलमार्क को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शुद्धता का पैमाना माना जाता है, जिसमें यह गारंटी होती है कि सोना 91.6 प्रतिशत खरा है। यानी 22 कैरेट है। कई बार हॉलमार्क के गहनों की कीमत भी अलग-अलग दुकानों पर अलग-अलग हो सकती है। इसलिए कई जगहों पर जानकारी लेकर उपयुक्त जगह से ही हॉलमार्क सोना खरीदें। मेकिंग चार्ज अलग-अलग होता है, जिसे ज्वेलर्स सोने के अलग-अलग गहनों के मुताबिक अलग-अलग मेहनताने के रूप में लेते हैं। ऐसे में ज्वेलरी खरीदते समय अलग-अलग जगहों के मेकिंग चार्ज की जानकारी जरूर ले लें, जिससे आपके गहने की कीमत में कम से कम मेकिंग चार्ज हो और सोना या मेटल अधिक हो। जब भी आप गहने बेचेंगे, मेकिंग चार्ज की कीमत का नुकसान तो होगा ही, क्योंकि बेचते वक्त तो आपको सोने की कीमत ही मिलेगी। ऐसे में कम से कम मेकिंग चार्ज वाली खरीदारी ही फायदे का सौदा है। हां, ध्यान रखें कि आप सोने में जितने अधिक नग और डिजाइन की मांग करेंगे, उस पर मेकिंग चार्ज उतना अधिक होगा और सोने की शुद्धता उतनी ही कम हो सकती है।
पांच निशान होते हैं हॉलमार्क में
हॉलमार्क सोने के आभूषण के लिए भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) द्वारा प्रदान किया जाता है। हॉलमार्क संकेत देता है कि आभूषण में सोने की मात्रा का उचित मूल्यांकन किया गया है और यह सोना अंतरराष्ट्रीय मानकों के आधार पर शुद्ध है, इसलिए कह सकते हैं कि अगर कोई ज्वेलर हॉलमार्क आभूषण बेचता है, तो उसे शुद्ध स्वर्ण आभूषण समझकर खरीद सकते हैं। यह हॉलमार्क पांच भागों में होते हैं। पहला बीआईएस स्टैंडर्ड मार्क का लोगो। दूसरा परिशुद्ध मार्क। यह सोने के कैरेट को संदर्भित करता है मार्क में 916 अंकित है, तो इसका मतलब है कि कुल धातु में सोने की उपस्थिति 91.6 प्रतिशत है।
तीसरा हॉलमार्किग सेंटर का लोगो चौथा जिस साल आभूषण का निर्माण हुआ उसका कोड। पंाचवा ज्वेलर की दुकान का नाम। बीआईएस कानून के मुताबिक किसी भी शिकायत की जिम्मेदारी हॉलमार्क सेंटर की नहीं होगी। जिम्मेदीरी ज्वेलर की होगी और उसी के खिलाफ मामला दर्ज होगा। शिकायत सही पाए जाने पर पांच लाख रुपए तक जुर्माना बेचने वाले पर लगेगा।
ये हैं आपके अधिकार
हर आउटलेट पर हॉलमार्क का प्रदर्शन, उसके घटकों की व्याख्या सहित करना आवश्यक होता है। हॉलमार्क एक बहुत छोटा सा निशान होता है। इसलिए इसकी सही जांच के लिए आप एक मैग्नीफाई ग्लास की मांग कर सकते हैं। यदि आप अभी भी सोने की शुद्धता को लेकर संदिग्ध हैं, तो आप ज्वेलर्स से इसकी जांच कराने को कह सकते हैं। आप एक अधिकृत जांच केंद्र या हॉलमार्किंग केंद्र पर जाकर सोने की जांच करवा सकते हैं। हालांकि इस जांच के लिए आपको शुल्क देना होगा, लेकिन यदि आपका संदेह सही निकलता है और मार्क की तुलना में सोने की शुद्धता कम होती है, तो लिया गया जांच शुल्क वापस कर दिया जाएगा। आपका ज्वेलर भी आपको उक्त आभूषण बदलकर देगा। शुध्दता की जांच के लिए कुछ केमिकल और एसिड होते हैं, जिनके इस्तेमाल से सोने की गुणवता परखी जा सकती हैं। शुद्ध सोने पर कोई असर नहीं होता, लेकिन अशुद्ध सोने के संपर्क में आने पर एसिड का असर दिखता है व रंग में परिवर्तन दिखता है।