घी में पशुओं की चर्बी के साथ हड्डियों का चूरा और उसका ही बन रहा शुद्ध घी
‘दूध में क्या सायनाइड मिलेगा, तब पकड़ोगेÓ सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी के बाद भी नहीं सुधर रहे मिलावटखोर
क्या-क्या मिला रहे पोषक आहार में… क्यों नहीं होती इन्हें सजा- ए- मौत?
इंदौर। शुद्ध देशी घी के नाम पर घातक तत्व युक्त नकली घी बनाने-बेचने, दूध में भी स्वास्थ्य के लिए अत्यंत खतरनाक तत्वों की मिलावट का काम बदस्तूर जारी है, जबकि दूध के मामले में तो सुप्रीम कोर्ट के एक जज यह भी कह चुके हैं कि क्या इसमें सायनाइड मिलाया जाएगा एवं किसी की मौत होगी, तब कार्रवाई करोगे क्या..? सुप्रीम कोर्ट के कड़े रुख के बावजूद बच्चों के पोषक आहार में महत्वपूर्ण दूध-घी में खतरनाक तत्वों की मिलावट करने वालों के लिए तो अब समय आ गया है कि कानून इतना सख्त कर दिया जाए कि उसमें ऐसे लोगों के लिए सजा-ए-मौत के प्रावधान हों। इंदौर के कलेक्टर आकाश त्रिपाठी ने एक घी माफिया व उसके पुत्र पर रासुका के तहत कार्रवाई की है अच्छी बात है, लेकिन पहले से ही 14 मामले दर्ज होने वाला ऐसा आरोपी पुन: छूटकर उसी काम में लग जाता है, तब सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्यों न ऐसे लोगों को मौत की सजा दी जाए? कई डेयरी मालिक तो दूध एवं दूध से बने उत्पादों में हेयर ब्लीच कलर तक मिला रहे हैं। वनस्पति घी में पशुओं की चर्बी, हड्डियों का चूरा मिलाने का बड़ा मामला भी उजागर हुआ है।
हाल ही में शुद्ध घी के नाम पर नकली घी बनाने वाली एक फैक्टरी शुभम इंडस्ट्री सांवेर रोड पर डाले गए छापे के दौरान नकली घी माफिया दिनेश साहू एवं उसके बेटे चेतन साहू को पुलिस ने गिरफ्तार किया था, वहां से नकली घी भी जब्त किया गया। गौरतलब है कि दिनेश साहू पर पहले से ही नकली घी बनाने के 14 मामले चल रहे हैं, स्पष्ट है कि यह शख्स बार-बार छूटने के बाद पुन: उसी कामकाज में लग जाता है। पहली बार इंदौर के कलेक्टर आकाश त्रिपाठी ने दोनों पर रासुका के तहत कार्रवाई तो की है, लेकिन शुद्ध घी के नाम पर बुरी तरह ठगाने वाले लोगों का ही सवाल है कि क्यों नहीं ऐसे लोगों के लिए सजा-ए-मौत के प्रावधान हों, तब जाकर ही मिलावटखोरों में भय पैदा होगा, जो दूध-घी जैसे आवश्यक पोषक खाद्य पदार्थों में भी घातक तत्वों की मिलावट करने से भी नहीं चूक रहे हैं। दिनेश साहू ने तो ऑइल पैकिंग के नाम पर उद्योग हेतु जमीन ली थी, जबकि काम नकली घी का किया जा रहा था। ऑइल पैकिंग यूनिट का लाइसेंस भी वर्ष 2012 में समाप्त हो चुका है। चेतन ने पुलिस को जो जानकारी दी है, उसके अनुसार यह नकली घी झाबुआ, खरगोन, धार, गुना, शिवपुरी आदि जिलों में भेजा जाता था। बड़ी-बड़ी कंपनियों के ब्रांड को असली बताने का गौरखधंधा किया जा रहा था। पिछले दिनों सियागंज क्षेत्र में भी पुलिस ने विक्की उर्फ महेंद्र माटा निवासी पैलेस कॉलोनी एवं जीतू शिवलानी निवासी माणिकबाग को गिरफ्तार किया, जो अपना ट्रांसपोर्ट सियागंज से नकली घी की सप्लाय करते थे। सेंट्रल कोतवाली पुलिस ने माधव ब्रांड के मालिक नीरज गुप्ता की रिपोर्ट पर अपना ट्रांसपोर्ट के मालिक शौकत, मंजूर एवं मुनीम लक्की को भी गिरफ्तार किया था। नेमावर रोड पर चल रही नकली घी की फैक्टरी सील कर दी गई। ट्रांसपोर्टर असली माधव घी का कार्टून नीचे से काटता और डिब्बे निकालकर उनके स्थान पर नकली माधव घी के डिब्बे रख दिए जाते थे। लेबल बदलने पर प्रति डिब्बा 800 रुपए का मुनाफा मिल जाता था।
घी में पशु की चर्बी… चर्चित रहा है इंदौर?
वनस्पति घी में पशुओं की चर्बी के मामले में इंदौर चर्चित रहा है। एक प्रमुख सोया तेल उद्योगपति का नाम इस मामले में पिछले दशकों में उछला भी था। वैसे वनस्पति घी जो एक समय के मशहूर ब्रांड डालडा का ही पर्याय बन गया। डालडा से लोग यह समझ लेते थे कि यह नकली घी है एवं जो शुद्ध घी, देशी घी आता है, वही असली है। सोयाबीन प्रोसेसर्स-एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सोपा) के पूर्व अध्यक्ष राजेश अग्रवाल जो शुद्ध घी मंथन के भी निर्माता हैं, उन्होंने बताया कि नकली घी में सस्ते खाद्य तेल अथवा वनस्पति घी में एसेंस के जरिए शुद्ध घी जैसी खुशबू आने लगती है और उसका फायदा उठाकर लोग इस काम को कर रहे हैं। वनस्पति घी में गाय-भैंस की चर्बी-हड्डियों का चूरा मिलाने के संदर्भ में उन्होंने कहा कि विभिन्न राज्यों में ये कार्य हो रहा है, जहां से सभी दूर ऐसे घी की सप्लाई भी की जाती है।
यूपी में पकड़ाया था बड़ा रैकेट
उत्तरप्रदेश (यूपी) में जून 2009 में पशुओं की चर्बी एवं हड्डियों के चूरे से वनस्पति घी तैयार करने वालों के एक बड़े गिरोह का पर्दाफाश भी हुआ था। इससे स्पष्ट है कि 5 वर्ष कोई लम्बा अरसा भी नहीं है। इधर, इंदौर के कांड को जानने वाले तो जानते ही हैं, लेकिन उसे कुछ दशक बीत गए, पर वो शख्स 30 हजार करोड़ का आसामी हो गया। इधर 5 वर्ष पूर्व हुई यूपी की घटना से साफ जाहिर है कि वनस्पति घी तैयार करने में पशुओं की चर्बी का उपयोग बंद नहीं हुआ है। अब सवाल यह उठता है कि पशुओं की चर्बी से बने ऐसे धनकुबेर कब जेल में होंगे? राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग ने इस मामले में उत्तरप्रदेश सरकार को नोटिस भी जारी किया था एवं मेरठ जो ऐसे वनस्पति घी का हब बन गया, वहां स्लॉटर हाउस (पशु वधशाला) को बंद करने को भी कहा गया था। मेरठ में ही करीब 250 ऐसी घी बनाने वाली इकाइयां पाई गईं। उत्तरप्रदेश सरकार ने छापे भी डलवाए और दावा किया कि जहां पशुओं की चर्बी निकाली जा रही थी, वहां ये कार्य बंद हो गया है, जबकि जांचकर्ता टीम ने पाया कि भट्टी पर बकायदा चर्बी गर्म की जा रही थी और यहीं से सारा घी निर्माता इकाइयों को चर्बी की सप्लाय भी की जा रही थी। पशुओं की चर्बी के एक बड़े व्यापारी दिलशाद का नाम भी इस मामले में उछला था, जो मोस्ट वांटेड सूची में है। उसी दौर में उत्तरप्रदेश के गाजियाबाद में दुर्गा डेयरी पर ऐसे घी को बेचने के मामले में कार्रवाई भी की गई थी। दुर्गा डेयरी द्वारा तब 225 रुपए किलो बिकने वाले शुद्ध देशी घी की जगह ऐसा नकली घी 120 रुपए किलो में ही बेचा जा रहा था, जिसकी सप्लाई विक्रेता शुद्ध के नाम से कर रहे थे। दुर्गा डेयरी का मालिक भी गिरफ्तार होने के बाद छूटकर फिर इसी धंधे में लग गया, जैसा कि इंदौर में अधिकांशत: मामलों में होता रहा है। यही घी हापुड़, अलीपुर, भिंड, मुरैना, विदिशा, सागर एवं इंदौर में भी फर्जी कंपनियों के नाम से सप्लाई हुआ है। अलीपुर में डाले गए छापों में ऐसा नकली घी जब्त भी किया गया, जो स्वाद ब्रांड के नाम से बेचा जा रहा था, इस पर एगमॉर्क लेबल भी था, जबकि स्वाद ब्रांड घी का पता एक कंस्ट्रक्शन कंपनी के नाम पर पाया गया।
- मार्च 2013 में नौवा, सौरभ, पारस, मुरली आदि शुद्ध घी के ब्रांड के नाम पर नकली घी बेचा जा रहा था। परदेशीपुरा इंदौर में डाले गए छापे के दौरान 75 किलो घी जब्त भी किया गया था। यहां भी नकली घी का कारखाना चल रहा था।
- 30 अगस्त 2012 को ग्वालियर में भी एक नकली घी की फैक्टरी पकड़ाई थी।
- 31 दिसम्बर 2013 को हैदराबाद पुलिस ने पाम तेल एवं घटिया वनस्पति घी मिक्स शुद्ध घी का बड़ा मामला पकड़ा था।
- 17 अक्टूबर 2012 को अहमदाबाद (गुजरात) में 400 किलो घटिया नकली घी पकड़ा गया था।
- मध्यप्रदेश में इंदौर के साथ ही अन्य शहरों जैसे मुरैना, ग्वालियर, चम्बल आदि क्षेत्रों में भी नकली घी माफिया सक्रिय हैं।
कितना खतरनाक है नकली घी?
उपरोक्त मामले तो खैर शुद्ध घी के नाम पर नकली घी बनाने और बेचने वाले के पकड़ाए हैं, लेकिन ये नकली घी कितना खतरनाक है, इस पर डिस्कवर इंडिया ने जो खोज की, उस आधार पर पता चलता है कि नकली घी में सस्ते तेल में ऐसा एसेंस डाल दिया जाता है, जिसकी खुशबू शुद्ध घी के समान ही होती है। सस्ता पाम तेल, जिसमें जमने का भी गुण होता है, इस कारण डिब्बों पर लेवल बदलकर नकली घी की सप्लाई तो धड़ल्ले से हो ही रही है, लेकिन कई लोग दानेदार वनस्पति घी में एसेंस डालकर भी उसे असली के नाम पर बेच देते हैं।
इन घातक बीमारियों का है खतरा…?
- कैंसर एवं हृदय रोग : दूध में ऑक्सीटोसिन जैसा घातक रसायन भी मिलाया जाने की खबरें मिली है। इससे पशुओं की प्रजनन क्षमता तक नष्ट हो जाती है, तो फिर मनुष्य को भी ऐसा दूध नपुसंक बना सकता है। इस रसायन से कैंसर एवं हृदय रोग के खतरे भी बढ़ जाते हैं। डिटर्जेंट, ऑइल पेंट्स, वाशिंग पावडर, यूरिया खाद, कॉस्टिक सोडा आदि थैली वाले दूध में भी पाए गए हैं। ये कई तत्व इसलिए मिलाए जाते हैं कि दूध अथवा उससे बने उत्पादों की लाइफ बढ़ सके। अर्थात जल्दी खराब न हो। यूपी, हरियाणा, दिल्ली, पंजाब, राजस्थान में लिए 27 दूध के सेम्पलों में सभी में मिलावट मिली। वनस्पति घी में गाय-भैसों की चर्बी, हड्डियों का चूरा और सस्ता पाम तेल मिला था, जिसमें जमने का गुण होता है और इसी पाम तेल से वाहन चलाने के लिए ईंधन भी बनाया जा चुका है, उसमें घातक एसेंस डालकर शुद्ध घी जैसी खुशबू निर्मित कर दी जाती है।
- हार्टअटैक का खतरा : पशुओं की चर्बी वाले घी से खून का संचार रुकने पर मनुष्य को हार्टअटैक का खतरा बढ़ जाता है एवं उसकी मौत भी हो सकती है। हड्डियों के चूर्ण से ब्रेन स्ट्रोक, गैगरीन एवं ज्यादा समय तक ऐसे घी के उपयोग से पाचन तंत्र की खराबी, लिवर, किडनी डैमेज होने की पुष्टि भी डॉक्टर करते हैं। इन तत्वों की मिलावट से अधिक मात्रा में शीशा (लेड) भी शरीर में पहुंचता है, जो मनुष्य के ब्रेन को बुरी तरह प्रभावित करता है। केडमियम से कैंसर, यूरिनरी ट्रैक्ट में खराबी, किडनी फेल होने जैसी समस्याएं, तो अधिक मात्रा में जिंक के उपयोग से गर्भपात जैसे खतरे सामान्य हैं। दूध में अमोनियम कम्पाउंड्स भी पाए गए हैं।
- डायरिया : एनएओएच, एनए-2 सीओ-3, एनएएचसीओ-3, हायड्रोजन पेराक्साइड, फार्मलिन, सोडियम सल्फेट एवं पेंट्स आदि इसकी लाइफ बढ़ाने के लिए मिलाए जाते हैं। इन सबसे डायरिया, आंतों की गंभीर बीमारी सामान्यत: होती है। दूध में तो हालत ये हैं कि काकटेल ऑफ केमिकल्स अर्थात रसायनों का कॉकटेल करके ही मिलाए जाने के प्रमाणों पर ही तो सुप्रीम कोर्ट तक को इतनी कड़ी टिप्पणी करना पड़ी। हायड्रोजन पेराक्साइड बालों को रंगने के काम आता है, तो पोटेशियम हायड्रोक्साइड का उपयोग साबुन बनाने में होता है।
- ड्रॉप्सी : पनीर-मावे का जीवन बढ़ाने के लिए आर्जीमोन ऑइल की मिलावट भी काफी खतरनाक है। सरसों तेल में इसकी बड़े पैमाने पर मिलावट से ड्राप्सी बीमारी जैसा भयावह हादसा हो चुका है। बहरहाल दूध एवं दूध से बने उत्पाद चाहे वो दूध ही हो अथवा इससे बनने वाला शुद्ध घी, मावा, पनीर, मिठाइयां आदि सब कुछ को इन मिलावटखोरों ने नहीं बख्शा है। मानव स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ करने, उन्हें धीमा जहर देकर उनकी जिंदगी छीनने, बच्चों को बचपन से ढेरों बीमारियां देने वाले ऐसे माफियाओं के लिए तो सजा-ए-मौत के प्रावधान ही जरूरी हो जाते हैं। रासुका के बाद भी अपराधी फिर छूट जाएंगे, जबकि ऐसे लोगों का बाहर आना ही मानव स्वास्थ्य के लिए बड़ा खतरा है। दूध एवं दूध से बने उत्पादों की नियमित जांच जरूरी हो गई है, लेकिन भ्रष्ट अधिकारियों की सांठगांठ से यह धंधा बदस्तूर जारी है। ऐसे में भ्रष्ट कई राजनेता ही जब मिले होंगे, तो कैसे ढर्रा सुधरेगा, यह भी अहम सवाल है?
सुप्रीम कोर्ट का कड़ा रुख…
सुप्रीम कोर्ट के एक जज ने पिछले दिनों ही दूध के मामले में टिप्पणी की थी कि क्या अब इसमें सायनाइड मिलाने का इंतजार है, जिसे पीते ही किसी की मौत हो, तब कार्रवाई करोगे? इतनी कड़ी फटकार केंद्र एवं राज्य सरकारों को लगाने के बाद भी इस धंधे में लिप्त माफिया सक्रिय हैं, ऐसे में खाद्य मिलावट निरोधक कानून 1954 जिसमें संशोधन भी हुए एवं 1986 के सख्त प्रावधान भी संशोधित होना जरूरी है, ताकि मासूम बच्चों को पोषण देने वाले ऐसे आवश्यक खाद्य पदार्थों में घातक तत्वों की मिलावट करने वालों को कम से कम आजन्म कारावास अथवा मौत की सजा ही दी जाए, ऐसा मत आमजन का है, जो ऐसे लुटेरों के द्वारा आर्थिक रूप से तो ठगे ही जा रहे हैं, अपितु अपने स्वास्थ्य को भी बर्बाद करने पर मजबूर हैं।
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